________________
220. जीवनमें सदैव दूसरों से शान्ति से बात | 231. सच्ची प्रीति आत्मोत्थान में बाधक नहीं करें।
बनती है। 221. सदैव क्षमा भाव धारण करे। साधु का प्रथम 232. समभाव व क्षमा से कर्म क्षय होते है। गुण क्षमा है।
233. जगत के सभी पदार्थ विनश्वर है, नश्वर है। 222. क्षमा का अर्थ क्रोध का उपशम है। (दबाना)
234. निदान' का फल अशुभ होता है। शांतता।
235. वैभव का नशा और नशे का नशा अनर्थ 223. संवत्सरी पर्व तीर्थंकरो द्वारा भी मनाया जाता
करता है।
224. अपनी भूल को 'शूल' माने और दूसरो की
भूल को ‘भूल' जायें। फिर दोनो पक्ष
आत्मानन्द पाए। 225. 'गुण' आत्मा को मोक्ष ले जाते है। दोष
नरक निगोद में ले जाते है।
226. जैन दर्शन विश्व का सबसे उत्तम दर्शन, है
जिसमें सभी जीवों से प्रेम करने की बात
कही गई है। 227. क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमा गुण से ही
महावीर बनते है।
236. धर्म आराधना के सहयोगी बनो। 237. सरागी देव की पूजा का अनर्थ रुप फल
(मुद्गर पाणी यक्ष) हो सकता है। देव सहायता
से अर्जुन हैवान बन गया। 238. दिखावटी जन सेवा की विकृति से उत्पन्न
होती है - भोग वृति। 239. उत्तम कार्य में भी माता-पिता की आज्ञा
प्राप्त करके करना - यह आर्य संस्कृति की
विलक्षणता है। 240. सर्वज्ञ वय को नहीं, आत्मा की योग्यता
को देखते है। एवंता कुमार पूर्व भवों के
संस्कार साथ लाए थे। 241. अपराधी भी आराधक हो सकता है। माफ '
करनेवाला महान् - मानव होता है। 242. सुकुमारता में भी अनंत शक्ति प्रगट होती
228. क्षमादान और क्षमा याचना क्षमापना' का
अंग है।
229. संवत्सरी आत्म साधना का पर्व है, विश्व
मैत्री का ये महापर्व है, हमें ही नहीं आज पूरे विश्व को महावीर के सिद्धान्तो पर बड़ा गर्व है। क्षमा को अपना ही लीजिए।
है।
230. भला हुआ हो। चाहे बुरा, उसे भूला दीजिये,
भीतर के जीवन-पुष्प को खिला लीजिए, प्यार से पड़ी हो चाहे खार से पड़ी हो. जो गांठे पड़ी हो, उसे खोल लीजिए।
243. कम बोलना, कम खाना, कम सोना.
कम चिंता करना. कम मिलना-जुलना,
(व्यर्थ बातें)कम सुनना। ये अच्छे गुण है। 244. बढिया खाने-पहनने से यथा संभव परहेज
रखना। सादा खान-पान सादा पहनावा रखना। सादगी ही सच्चा श्रृंगार है।