SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 39. 40. गौतमकुमार आदि 18 भाईयों ने युवावस्था में चारित्र धारण किया। 41. अंतगड़सूत्रमें 57 पुरुष तथा 33 स्त्रियों का अधिकार आया है। 42. श्री कृष्ण महाराज की माता के प्रति विनम्रता व सेवा का दिग्दर्शन मिलता है। 43. 45. 66 साधक आत्माओं का अध्ययन 11 अंग सूत्र 12 साधकों ने 12 अंगो (सूत्रो) का अध्ययन किया था। गजसुकुमाल व अर्जुन इन दोनों ने अष्ट प्रवचन माता का अध्ययन किया। 22 वें तीर्थंकर के शासन में 40 पुरुष साधक शत्रुंजय पर्वत से मोक्ष गये, 24 वें तीर्थंकर के शासन के 16 पुरुष साधक विपुल गिरी पर्वत से मोक्ष गये तथा 33 साध्वियाँ उपाश्रय से व गजसुखमाल मुनि महाकाल श्मशान से मोक्ष गये। 44. संलेखना संथारा काल अर्जुन अणगार का 15 दिन व गजसुखमाल मुनि जिस दिन संयम धारण किया रात्रि के प्रथम प्रहर में मोक्ष गए शेष सभी 88 आत्माओ का संलेखना काल एक-एक मास का था। अन्तगढ़सूत्र का एक अर्थ ऐसा भी करते है कि सभी 90 साधक मोक्ष जाने से अन्तर मूहुर्त पूर्व ही केवलज्ञानी बने थे, और सभी अन्तर मूहुर्त पूर्व ही केवलीज्ञानी की पर्याय में रहकर मोक्ष पधार गये। 46. मृत्यु का उपसर्ग सामने होते हुए भी श्रावक सुदर्शन निर्भय ही रहे । उनकी दृढ़ धार्मिकता का दिग्दर्शन कराता है।वे प्रिय व दृढ़धर्मी थे। 207 47. काली आदि दस रानियों का चारित्र तप प्रधान रहा था। 48. 49. 57 पुरुष साधको मे से 55 साधकों ने गुण संवत्सर तप, पड़िमा व अन्य (अर्जुन अणगार व गजसुख मुनि छोड़कर) तप प्रकीर्णक रूप के किए थे। बाल क्रीड़ा की “झंखना” का वर्णन देवकी महारानी के चारित्र से होता है। 50. दीर्घ दीक्षा पर्याय एवंता मुनि की थी. अल्प संयम पर्याय गजसुकुमार की थी। 51. एक परिवार से (यादव वंशी) सबसे ज्यादा दीक्षा हुई दूसरे नम्बर पर श्रेणिक राजा की रानियों ने दीक्षा ली। 52. ललित गोष्ठी की स्वच्छंदता से कितने लोगों की अकाल मौत हुई, स्वतंत्रता खराब नहीं परन्तु स्वच्छंदता दुःखदाई 53. वर्तमान काल के 32 आगमों मे से अंतगड़सूत्र ही ऐसा एक मात्र शास्त्र है कि जिसमें वर्णित 90 साधक आत्माएँ सभी मोक्ष पधारी । 54. ये शास्त्र “कर्म निर्जरा” प्रधान है। संवर सहित निर्जरा है 55. कृष्ण महाराज की “विचक्षणता” का वर्णन मिलता है। 56. पर्युषण पर्व लोकोत्तर पर्व है। “टेन्सन मुक्ति” नामक पर्व है। 57. जीवों के प्रति 'द्वेष वृति छोड़ना' ही सच्ची संवत्सरी है। 58. पर्युषण पर्व आत्म अनुशोधन पर्व है। कर्म मैल हटाने का पर्व है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy