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________________ T) गट्टर पद्धति से बाहरी स्वच्छता तो | 105. असाता वेदनीय बंध के 12 कारण निम्न दिखती है परन्तु लेट्रिन से बीमारी प्रकार है। के जन्तु उत्पन्न होते है। हिंसक पद्धति 1) a) प्राण, b) भूत c) जीव d) सत्व, इन है, व पानी का अपव्यय अधिक होता चारों को दुःख देना 2) शोक कराना 3) रुलाना 4) झुराना 5) पीटना 6) परितापना U) बडों को प्रणाम नित्य कीजिए। तथा 7) से 12 तक बहुत दुःख देना (शोक, v) सेवा करने वालों के शरीर में स्फूर्ति रुलाना, झुराना, पीटना, परितापनासभी रहती है, आलसी को रोग जल्दी के आगे बहुत लगाना) आते हैं। 106. शरीर के अंगोपांग का अव्यवस्थित दुःख W) प्रातः काल सामायिक साधना अवश्य जनक निर्माण होने में चार कारण भगवान करावें। ने बताये है, 1) मन की वक्रता 2) वचन की वक्रता 3) काया की वक्रता 4) वितण्डावाद x) प्रातः प्रार्थना परमेष्ठि का स्मरण नमन करने से अशुभ नाम कर्म का बंध होता है। (माला) कीर्तन करिए Y) शुभ चिन्तन मनन से आधि, व्याधि 107. दुःख विपाक सूत्र में 10 जीवों के घोर व उपाधि मिटती (घटती) है तथा दुःखों (रोगों) का वर्णन आया है, उन दुःखो आत्मा को समाधि प्राप्त होती है। के मूल में पंचेन्द्रिय जीवों आदि को उन्होने दुःख दिया, बदले में ही दुःख मिला। 2) सत्य में आस्था अटल होनी चाहिए। 108. तन रोगों की खान है, तन को तपाये बिना, 104. जैन शास्त्रों में बड़े बड़े सोलह रोग बताए । सहनशक्ति नहीं बढ़ सकती है। गये है। कम खाना, गम खाना और नम जाना। विपाक सूत्र में विशेष वर्णन आया हुआ है। | मान्य श्री इन्दरचंद कोठारी महोदय, नमो, यन्त्राधीनं जगत् सर्वम् सञ्जातं पर हस्तगम् सुलेखेन तु स्वायत्तं कृतं सर्वं स्व हस्तगम् ||४|| हस्तलिखितानि पत्राणि मया लब्धानि यानि वै । मम सञ्जायते चित्ते तानि दृष्ट्वा महत्सुखम् ।।१।। ममा प्यत्र मति र्जाता हस्त लेखेन देखनं शक्यं नेतु प्रकाशाय यन्त्रा यत्तं न तद्भवेत् ।।५।। नापि सड्गणकं युक्तं नापि प्रुफस्या शुद्धयः वर्जयित्वा महारम्भं स्वल्पारम्भः कृतश्शुभंः ।।२।। विना शीलं यथा नारी भूषणै नैव शोभते सार तत्त्वं विना लेखो मुद्रणेन न शोभते ।।३।। । दयानंदो भार्गवः ३.२.२०११ (जयपुर)
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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