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83. मेरा ही कहना मानना होगा “ये ego की
बिमारी से ग्रस्त सारा विश्व हो चुका है। राजसिक भावों में तामसिक जीवन जल्दी बनता है। तामस में स्वस्थता घटती जाती है।
84. सात्विक भावों मे सभी जीवों को "अप्प भूयस्स” की दृष्टि से कल्याण व हितकारक मार्ग ही दिखाई देता है। स्व-पर का द्रव्य व भाव दोनों स्वास्थ्य अच्छा रहे।
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86.
सामान्यतः सात्विक भावों वाले जीवो के रोग - असाता आदि का उदय ही कम होता है। वैसे शुभ भावों व शुभ अनुप्रेक्षा से साता वेदनीय का तो वर्तमान में बंध करते है तथा पूर्वबांधी गई असाता वेदनीय की निर्जरा करते है।
असातावेदनीय कर्म जीव आठ प्रकार से भोगता है । यथा
1) अमनोज्ञ शब्द - दुःख देने वाले (अप्रिय) शब्दों को सुनता है।
2) अमनोज्ञ रुप दुःख देने वाले रूपों को देखता है।
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3) अमनोज्ञ गंध - दुःख देने वाले गंधों सूंघता है
4) अमनोज्ञ रस दुःख देने वाले रसों का सेवन करता है
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5) अमनोज्ञ स्पर्श - दुःख देने वाले स्पर्श (उष्णशीत आदि) का सेवन करते है। 6 ) मन का दुःख मन अशांत उद्विग्न व दुःखी रहता है।
7) वचन का दुःख - स्वयं के वचनों से स्वयं दुःखी होता है।
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8) काया का दुःख काया में रोगों का उत्पन्न होना, शरीर के ही अंगोपांग शरीर को ही दुःख देते है। दर्द, पीड़ा व वेदना शरीर के माध्यम से जीव भोगता रहता है।
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87. दुःखों से बचने की दवा है, छः कायो के जीवों की हिंसा घटाओ / छोड़ो तभी जीव असाता से बच सकेगा।
88. शरीर में अधिक आलस्य की वृद्धि भी अस्वस्थ शरीर की पहचान है।
89. आयु के दशकों को समझकर धर्म में जुड़ने
की रुचि जगावें।
90. एक्सीडेन्टो की वृद्धि से महीनों महीनों एक जगह बैठा रहना एवं सोना पड़ता है, उससे भी शरीर की फीजीकल Fitness टूट जाती है।
91. सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। ये सूत्र सड़कों पर देखकर भी आप अनदेखा कर बैठते हैं। अपने वाहनो की स्पीड़ (गति) Out of control नहीं होनी चाहिए। फिर क्या होता है ? पता है ना???
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92. मनुष्य जन्म बारबार नहीं मिलता है, जागृत प्रमाद छोड़ो । सन्त - सत्संग (समागम) में बैठो, अच्छे विचारो को धारण करना सीखो, आप बीमारियों से मुक्त होते जावोगे । 93. रोग अवस्था में भी “धर्माचरण” हो सकता है। बेहोशी में कुछ भी नहीं कर सकते है।
स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, शुद्ध भोजन
तथा स्वच्छ स्थान में ही क्या आप रहना पसंद करते है ?
उत्तर : हाँ बावजी, तो भाई जीवन