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भौतिक इच्छाएं जागती ही रहती हैं। 8. द्रव्य को नहीं समझता है। 24. पर्याय दृष्टि की पर्यालोचना से अनित्य भावना भूतकाल की पर्यायों मे राग द्वेष न करे, में जाना ही कर्म निर्जरा है।
वर्तमान कालीन पर्यायों को क्षणिक समझकर 25. पर्याय दृष्टि वाले को यह पता नहीं रहता है
स्व द्रव्य में रहने की कोशिश करावे। कि जीवन का ध्येय क्या? धन प्राप्ति या 1. भ्रमणा सत्य - रेलगाड़ी में बैठे हुए धर्म प्राप्ति? ज्यादातर लोग बिना ध्येय
का पेड़ पौधों को दौड़ते हुए देखना, से ही जीवन जी रहे है।
यह सत्य नहीं होते हुए भी आँखो की द्रव्य दृष्टि व पर्याय दृष्टि में क्या अन्तर है?
दृष्टि से भ्रमणा हो जाती है।
2. व्यवहार सत्य - माता पिता द्रव्य दृष्टि
रिश्तेदार आदि व्यवहार से सत्य 1. आत्मा के लिये हितकारी है
है, बचपन-युवानी आदि। 2. स्वयं के स्वरुप मे स्थिर रहता है
3. परम सत्य - मात्र “आत्म द्रव्य" ही 3. मैं ज्ञान दर्शन पिण्ड़ रुप हूँ।
परम सत्य है, द्रव्य दृष्टि से स्व 4. उपयोग धर्मी हूँ।
आत्मा में रहना, पर द्रव्य मात्र
सभी मेरे से भिन्न है। मात्र आत्मा 5. पर द्रव्य मैं नहीं हूँ।
में रहना ही परम सत्य है। 6. द्रव्य दृष्टि से विषय विकार शान्त होते है। । एक मिनिट रुकिए : 7. द्रव्य से सभी को अपने समान मानता है। प्र 1. जीवों को भय किसका? 8. पर्यायें आती है, चली जाती है परन्तु मैं तो उ. दुःख का भय है। चेतन द्रव्य सदैव रहने वाला हूँ।
प्र 2. दुःख कैसे आता है? पर्यायदृष्टि
उ. स्वयं जीव के प्रमाद से। 1. अहितकारी है।
प्र 3. दुःख मुक्ति का उपाय क्या? 2. स्वयं में अस्थिर रहता है।
उ. प्रमाद का त्याग । 3. पर्यायों में अटकता है।
प्र 4. धर्म किसके पास है? 4. उपयोग में मोह भाव रहते है।
उ. जो सहन करता है, धर्म ‘उसी' के पास 5. पर्यायों में ही रहता है। 6. पर्यायों के पीछे जीवन भर दौड़ता ही रहता | प्र 5. मानव को जीभ एक तथा 2 कान मिले
है ना? 7. भेद रुप मानता है।
सुनो ज्यादा, बोलो कम।