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शिवमस्तुः सर्व जगतः पर्याय दृष्टि एवम् द्रव्य दृष्टि
1. प्रतिक्षण परिवर्तन होती रहे, उसे पर्याय | 11. द्रव्य में गुण और पर्याय रहती है। कहते है - (जल की तरंगे)
12. पर्याय दृष्टि वाला इन्सान, एक उलझन में 2. पर्याय दृष्टि से पदार्थ में आसक्ति पैदा पड़ा जीव होता है। होती है।
13. द्रव्य दृष्टि से सभी समस्याओं का समाधान पर्याय दृष्टि में उलझा जीव सदैव दुःखी हो जाता है। ही रहता है।
14. पर्याय जो अस्थिर है, अनित्य है उसमें पर्यायें प्रतिक्षण बदलती है, ये मान्यता द्रव्य आकर्षित होना ही पर्याय दृष्टि है। दष्टि वालों के सदैव नजर में रहती है।
15. द्रव्य दृष्टि से छः द्रव्यो का स्वतंत्र स्वरुप क्षणिक सुख, दुःख रुप शब्द आदि में है, ऐसी मान्यता होती है। उलझना ही पर्याय दृष्टि है।
16. घटनाएं, उम्र, पुद्गलों की रचना मकान व पर्याय दृष्टि में जीव संसार में भटकता रहता
शरीर आदि में प्रतिक्षण पर्यायें बदलती ही
रहती है। राग-द्वेष की तीव्रता में पर्याय दृष्टि ही 17. पर्याय को पर्याय-परिवर्तनशील ही मानना। प्रधान रुप से कारण बनती है, द्रव्य दृष्टि
18. द्रव्य दृष्टि रखने वाला जीव स्व में स्थिर से जीव क्या? इसे समझे?
रहता है और पर्याय दृष्टि वाला जीव पर्यायों इन्द्र-धनुष का रुप पुद्गल की एक पर्याय में पड़ा रहता है, अस्थिर चलायमान रहता है, रोग या पीड़ा ये आसातावेदनीय की है, सुखों से दूर रहता है। पर्याय है इन दोनों पर्यायों में राग व द्वेष
19. पर्यायों की मांगणी, आत्मा को भिखारी करना ही पर्याय दृष्टि है।
बना देती है। 9. जीव व अजीव दोनों की पर्यायें होती है।
20. पर्यटन स्थानों में ज्यादा घूमना-फिरना ये 10. द्रव्य में गुण और पर्याय होती है। गुण तो ‘पर्यायदृष्टि' के ही कारण है। द्रव्य से कभी अलग नहीं होता है परन्तु
21. पर्याय में सुख मानने वाला क्षणिक सुख के पर्याय बदलती ही रहती है। जिस प्रकार
पीछे ही भागता है। जीव द्रव्य का गुण उपयोग है, जीव में सदा उपयोग तो रहेगा ही। उसी प्रकार पुद्गल
22. पर्यायों में आकर्षित जीव को क्षणिक सुख द्रव्य में भी गुण वर्ण, गंध, रस आदि पुद्गल
(भौतिक सुख) की प्राप्ति होती है। की वर्णादि पर्यायें बदलती ही रहती हैं। | 23. पर्याय दृष्टि वाले जीवों में सदैव नई-नई
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