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________________ 109. नरक में द्वेष शाश्वत है। आसूरी भावना (द्वेष) हकीकत हमारे जीवन को 'नरक' बना देती है। 110. द्वेषी व्यक्ति 'क्षुद्र व तुच्छ' माना गया है। 111. द्वेष वृति' से मानव भीतर का भीतर टूटता जाता है। भीतर से टूट जाता है!! 112. द्वेष से क्षमा व मृदुता गुण' टूटता जाता प्रति ‘शुभ सोचना' 'खामेमि करना’ ‘प्रीति भीतर लानी', कुछ दिनों में उसका (प्रतिपक्षी). द्वेष टूट सकता है। बहुत लोगों ने “भावणा जोग सुद्धप्पा” से द्वेष को तोड़ा है। अन्तिम प्रतिवेदनः जैन धर्म आत्म-धर्म है, जिन्हें 'आत्मा' को आराधना में जोड़ना है तो हे "देवाणु प्पिया" 113. द्वेषी व्यक्ति में प्रायः अशुभ लेश्याए व आर्त्त रौद्र ध्यान रहते हैं। 114. मैत्री - प्रीति' बढ़ाओगे तो द्वेष का जहर खुद ब खुद घटता ही जाएगा। यही दवा सत्य है। प्रीति जोड़ो - द्वेष छोड़ो (संकेत) One word is enough for a wise man. 115. हजारो लोग भी हमारे प्रति द्वेष भाव रखकर हमे दुर्गति में नहीं भेज सकते है। परन्तु हमने 'एक' 'ONE' भी व्यक्ति के प्रति द्वेष - वैर भाव रखा तो हमारी सद्गति अवश्य रुक जायेगी।?? 116. द्वेष आने में चार कारण प्रधान माने हैं जमीन, मकान, शरीर, उपाधि। (ठाणांग) 117. “टेली पेथी" मानसिक शुभ भावों (लेश्या) में रात्रि में सोने से पहले उस व्यक्ति के द्वेष छोड़कर प्रीति व विनय” की आसेवना करनी ही होगी । उसके बिना जीव “धर्म को धारण करना तो दूर" धर्मात्मा से भी दूर ही दूर रहेगा। सभी का कल्याण होवें । कुछ अतिरेक आ गया हो तो क्षमा करावें इसी शुभ भावना के साथ : सन 2010 गणेश-बाग बेंगलोर में चातुर्मासार्थ विराजमान स्व. आचार्य तपस्वीराज चंपालालजी म.सा के शिष्य परम पूज्य विनय मुनि जी म.सा खींचन' द्वारा लगाया गया युवा शिविर “एक कदम अपनी ओर" के तृतीय सत्र' में नव दिवसीय दि. 14 अगस्त से 22 अगस्त 2010 तक के काल में “धर्म का दुश्मन द्वेष” विषय पर विशेष अध्ययन करवाया गया। शांति के लिए त्याग करें। शक्ति के लिए जाप करें। सुरक्षा के दिए दान करें। सिद्धि (सफलता) के लिए ध्यान करें।। बिना आडम्बर का एक उपवास, आडम्बर की अठाई से ज्यादा फायदेमन्द है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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