________________
हम मन में खुश होते है, वो जलता है। | 37. द्वेष की घटोतरी' ही 'धर्म की बढ़ोतरी' 24. उग्र-द्वेष में सामनेवाले पक्ष को हम जीवित
करवायेगी। भी नहीं देखना चाहते है।
38. विनय व प्रीति क्रोध द्वेष को मिटाने की 25. द्वेष हमारी सदबुद्धि को नष्ट करता है,
अचूक दवा है, राम बाण दवा है। जहरीली दृष्टि हो जाती है।
राग : आत्मा को वीतरागी नही बनने 26. हमारी बात को कोई नहीं माने, तो हमें
देता है परन्तु द्वेष तो मानव को ‘इन्सान' उसके ऊपर द्वेष आना शुरु हो जायेगा।
ही नहीं बनने देता है। द्वेष से 'शैतान'
बनता है। 27. द्वेष की गांठ कैन्सर की गाँठ से भी भयानक
39. “सव भूयप्प - अप्प भूयस्स" सभी जीवों
को अपनी आत्मा “समान - समझना" 28. द्वेषी दूसरों पर झूठा कलंक लगाने से भी
इसका गहरा चिन्तन द्वेष को तोड़ देगा। नहीं डरता है।
40. उपशम भाव से द्वेष को “देश निकाला" 29. द्वेषी व्यक्ति प्रायः कलह (कंकाश) में उलझा
दिया जा सकता है। रहता है।
41. तिरस्कार और निम्नभाव दूसरों के प्रति 30. द्वेषी व्यक्ति दूसरों के दोषों की चुगली खाता
द्वेष दिखाता है।
42. द्वेष की गति (अधो) नीची होती है। 31. जीव जिनसे द्वेष रखता है, उनकी निंदा करता रहता है।
43. द्वेष की बहुलता ‘नरक' गति में बताई गई 32. द्वेषी का अन्य नाम 'निरंक' भी हो जाता
44. द्वेष (क्रोध-मान) की भयानकता से 'नरक'
में रहे जीव किसी भी प्रकार की मैत्री (प्रीति) 33. कोमल परिणामों में राग जन्मता है परन्तु
या गुफ्तगू नहीं कर सकते है। कठोरता' में द्वेष का जन्म होता है।
45. नरक में क्रोध (द्वेष का एक रुप) शाश्वत 34. द्वेषी पंचेन्द्रिय हत्या करने से भी डरता
माना गया है। नहीं है।
46. द्वेषी के पास कोई सज्जन व्यक्ति बैठना 35. द्वेष एक चिनगारी होती है, यदि बढ़ती गई
भी नहीं चाहता है। तो सब कुछ भस्म कर सकती है । जैसेः दुर्योधन।
47. द्वेष बढ़ना नहीं रोका तो वैराणुबन्धी बन
जायेगा। 36. युधिष्ठिर (धर्म राज) द्वेष के परिणाम अपने भीतर नहीं आने देते थे। अतएव वे गृहस्थ
उग्र-द्वेष-धर्म का तो दुश्मन है ही, पर्याय में भी 'धर्मराज' कहलाये।
मानवीयता का भी विरोधी है।
है।