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________________ श्री रिद्धकरणजी बेताला के उद्गार- 188. ज्ञानी की नजर 'गया' पर नही, बैलेंस (90 वर्षीय दि. 9 नवम्बर 2009) पर रहती है। 189. कारण - कार्य (cause and effect) के दो कठिन घड़ी गुजरी इस जीवन में, सिद्धान्त पर हमेशा दृष्टि रखते है, वे ज्ञानी एक आपके आने से पहले, कहलाते है। एक आपके जाने के बाद। 190. दृश्य को आँख से देखा जाता है, अदृश्य 179. संतो के गुण लेना दोष नहीं। को आत्मा से। 180. फीलींग Feeling बिना की सारी फील्डिंग 191. देकर सुख मानों, संजोकर नहीं। Fielding व्य र्थ है। 192. आलसी से दोस्ती करना, दूल्हे को गधे पर बिठाना है। 181. परस्पर सहयोग, मानव जीवन का अनिवार्य 193. दौलत के घमण्ड ने अब तक किसे अंधा अंग है। नहीं बनाया। 182 संवेदन-हीन मत बनो? 194. बनाने की सोचिए बिगाड़ने की नहीं। 183. सुख तो हमारा स्वभाव है। सुख तो हमारे बसाने की सोचिए उजाड़ने की नहीं। भीतर लबालब भरा पड़ा है। मुझमें, आपमें, हम सभी के अन्दर सुख का भण्डार भरा नया नक्शा बनाना है दुनियाँ का अगर. पड़ा है। जरुरत है केवल भण्डार खोलने जोड़ने की सोचिए तोड़ने की नहीं। 195. Right Decision at the right moment 184. जिन गुरु के यहाँ स्त्री तथा लक्ष्मी (पैसा) | 196. सीधेपन में सार है, टेढ़ेपन में हार है, सम्बंधी व्यवहार न हो, वहाँ हमारा कल्याण सीधे रस्ते चलने वाला, शीघ्र पहुंचता पार हो सकता है। 185. स्वच्छंदता तो सबसे बड़ा “असाध्य” रोग 197. जिसने हमको ठुकराया हमतो उसके भी आभारी है 186. पुस्तक में ज्ञान नहीं होता, ज्ञान तो ज्ञानी जिसने हमको गले लगाया, वो प्राणों का के पास होता है। अधिकारी है। 187. Every action and reaction are equal | 198. किसी को दुःख देना, स्वयं के लिए दुःखो ___and opposite. को निमंत्रण देने समान है। की। है। जीना है तो पूरा जीना, मरना है पूरा मरना। इस जगत की यही विडम्बना, आधा जीना आधा मरना। 180
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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