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जैन शास्त्रों में श्रावक श्राविकाओं के इक्कीस गुण बताए गए है। पहला गुण (बोले) श्रावकजीनव तत्ववपच्चीसक्रिया का जानकारहोवें।
पच्चीस- क्रिया
তারনর
क्रिया से कर्मों का बन्ध होता है । कर्म बंध के कारण क्रियाएं पच्चीस प्रकार की है। इनका वर्णन स्थानांग सूत्र स्थान २ उद्देशक १ तथा स्थान ५ उद्देशक २ में इस प्रकार है।
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११
जीव तत्व जिसमें जानने देखने
काइया और अनुभव करने की
अहिगरणया पाउसिया परितावणिया
पाणाइवाइया शक्ति हो, उपयोग गुण शरीर आदि प्रमत्त योगों के चाकू-छुरी तलवार आदि ईर्षा, द्वेष, मत्सरता आदि किसीको मार पीट कर प्राणों का नाश करने रुप सचेतना लक्षण कर्ता व्यापार से होने वाली हलन शस्त्र से होने वाली क्रिया अशुभ परिणाम रुप । अथवा कठोर वचन कहकर क्रिया ।१ स्वहस्तश्परहस्त भोगता । जीव अरुपी चलन आदि क्रिया । दो भेद संयोजना र निर्वर्तना
जीवर अजीव
क्लेश पहुँचाना । दुःखी। होता है। १ अनुपरत २ दुष्पयुक्त
करना कष्ट देना। अजीव तत्व
.१स्वहस्त २परहस्त चेतना गुण से रहित उपयोग से हीन जड़ता। भाव जिसमें हो । अजीव
आरंभिया परिग्गाहिया मायावत्तिया
अपच्क्वाण वत्तिया मिच्छादसण वनिया रुपी अरुपी दोनों प्रकार
१जीव परिग्रह- कुटुम्ब १ जीव आ.छह काया के होते है।
परिवार दास - दासी गाय छल कपट से तथा कषाय के विरति के अभाव में यह सम्यक्त्व के अभाव में जीबो का आरंभ करने से। भैंसादि चतुष्पद् शुकादि पक्षी सद्भाव में लगने वाली क्रिया होती है । सभी को अथवा तत्व सम्बन्धी पुष्य तत्त्व २ अजीव आ. कपडा, धान्य फल आदि स्थावर जीवों । क्रिया
समान रूप से लगती है। अश्रद्धा या कुश्रद्धा के आत्मा को पवित्र करें। कागज मत कलेवर आदि.कोममत्व भाव से अपनाना।। .२ अजीव परिग्रह - सोना..
कारण लगनेवाली क्रिया।
आत्मभाव वक्रता बान्धना दुर्लभ, अजीव वस्तुओं को नष्ट चांदी, मकान व आभूषण (कुटिलता)
न्यूनाधिक भोगना सरल है। करने से होने वाली क्रिया। शयन आदि अजीव वस्तुओं २ परभाव वक्रता (खोटा
२ तदव्यतिरिक्त परममत्व भाव रखना। पाप तत्व
तोल ठगाई) आत्मा को मलिन करेंपापों को बोझ से भारी करें, उसका फल दुःख दिविया
पुट्ठिया पडुच्चिया सामन्तो वणिवाइया
सहत्थिया
जीव और अजीव वस्तुओं के जीव अधवा अजीव पदार्थ जीव अथवा अजीव के स्पर्श जीव और अजीव रुप बाहामा बराक अपने हाथ में ग्रहण किए आश्रव तत्व को देखने से होने वाली से होनेवाली राग-द्वेष की वस्तु के आश्रय से उत्पन्न
किए हुए संग्रह को देखकर
हुए जीव को मारने से पीटने जिन कारणों से आत्मारागद्वेष परिणाम
लोग प्रशंसा करें और प्रशंसा परिणति । राग-द्वेष और उससे होने को सुनकर हर्षित होना । इसम य
रुप तथा अपने हाथमें परकर्मपुद्गलों का आना
वाली क्रिया। • होता है, जैसे कर्म रुपी
'प्रकार बहुत से लोगों के द्वारा ग्रहन किए हुए जीव से दूसरे
अपनी प्रशंसा सुनकर हर्षित। जीव को मारने पीटने रुप । | पानी आत्मा रुपी तालाब
होने से यह क्रिया लगती हैं।। १.जीव २ अजीव --में आनेकामार्ग।
१जीव २ अजीव संबर तत्व - जिन कारणों से आते। कर्म पुद्गलों को रोका।
नेसत्थिया आणवणिया
बैदारणिया अणाभोगवत्तिया
अणवकंखवत्तिया जावें।
किसी वस्तु को फेंकने से। दूसरे को आज्ञा देकर कराइ विदारण करनेसे होनेवाली अनजानपनेसे उपयोग - हिताहित की उपेक्षा से निर्जरा तत्व होनेवाली क्रिया। जानेवाली क्रिया अथवा ! क्रिया।
'शुन्यता से होनेवाली क्रिया । लगने वाली क्रिया आत्मा के साथ बन्धे१जीव पृष्टिकी २ अजीव दूसरों के द्वारा लगवायी
.9 अनायुक्त आदानता २ १स्व २ पर नैष्टिकी जाने वाली क्रिया।
। अनायुक्त प्रमार्जनता - किया जाना।
१जीव आज्ञापनिका बन्य तत्व
२ अजीव आज्ञापनिका जिन कारणों से कर्म
२१ २२
२३ पुद्गल आत्मा में दुध पेज्ज बत्तिया
देस वत्तिया पओगिया सामुदाणिया
इरियावहिया और पानी की तरह राग से लगनेवाली क्रिया क्रोध २ मान से लगने मन का दुष्प्रयोग करना
बहुत से लोग मिलकर एक साथ
। कषाय रहित जीवों को योग -एकमेक होजाते है।
'एक ही प्रकार की क्रिया करे, अच्छे । माया श्लोभ वाली किया। वचन का अशुभ प्रयोग
बुरे दृश्य देखे या आरंभ जन्ट मात्र से होने वाली क्रिया मोक्ष तत्व
करना ३ काया का बुरा । कार्यों को साथ मिलकर करे, १ उपशान्त मोह वीतराग सम्पूर्ण कर्मो का क्षय हो।
प्रयोगकरना
उसेसामुदानिकी क्रियाकहते हैं। क्षीण मोह वीतराग जाना मोक्ष ।
सान्तर सामुदानिकी
३ सयोगी केवली २ निरंतर सामुदानिकी ३ तदुभव सामुदानिकी
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चित्रांकन सम्पूर्णा आदि
ऊटी
शिविराचार्य प.पू.श्री विनय मनिजी म.सा. "खीचन"
आद्य संग्रह सृष्टि:
| श्री सुत्र विनय स्वाध्याय मंडल, दिल्ली का चातुर्मास सन् 2006 मणिबेन कीर्तिलाल मेहता आराधना भवन, कोयम्बतुर |
11 आराधना भवन, पावर
संपर्क : ०११-२२५८४५२७