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संथारा-समाधि-मरण
19) आत्मा को देव और भगवान बनाता है।
20) देवों द्वारा भी इच्छित सकाम मरण है। 1) जहाँ जीवन की इच्छा नहीं, वहाँ मरण की
21) आठ बार से अधिक नहीं होता । आठवीं बार भी नहीं।
या पहले ही केवल ज्ञान हो जाता है । 2) समभाव सहित मृत्यु का इन्तजार किया जाता
इस प्रकार संथारा अमृत है जबकि आत्म
हत्या जहर व जहर से भी भयंकर फलदाई है। 3) इन सब दोषों को नष्ट करते हुए केवल आत्म संथारा सर्व पापों को गलाने वाला होने से सिर्फ
कल्याण के भाव से किया जाता है। मंगल ही नहीं महामंगल है। कर्म के उदय से होने सर्व संसारी इच्छाओं से रहित होकर जल वाले दुखों से रहित, कर्म के क्षयोपशम, क्षय, उपशम के समान शान्त शीतल चित्त के साथ हर्ष का परिणाम, मोह रहित, सच्चा आत्मिक सुखदायी सहित की जाती है।
होने से सच्चा सुख व सच्ची शान्ति है, सर्व कलह एक दिन अवश्य आने वाली मृत्यु को अपने
क्लेश शोक संताप रहित है। जीवन की सर्व साधना वश करने की सुन्दर साधना है।
का फल व स्वयं भी महासाधना, अति विशेष साधना 6) मृत्यु पर विजय मानव भव की सफलता
है, आत्मा की महापरीक्षा, सगति का कारण है,
मोक्ष प्राप्ति में तीव्रता अति तीव्रता लाने वाला, सर्व 7) अपनी व दूसरों की पूर्ण दया है।
जन्म मरण का अति शीघ्र अंत कराने वाला होने
से, आत्मा के लिए मोक्षमार्ग में महाक्रान्ति है। 8) सर्व 18 पापों के त्याग, महात्याग सहित
आलोचना प्रतिक्रमण सहित सफल होने वाले संथारे
की, आराधना, परम आराधना से आत्मा सूर्य समान 9) सर्व आहार त्याग व अनासक्ति सहित है।
प्रकाशमान, चन्द्र समान शीतल, सागर समान 10) . सर्व वैर रहित, सर्व क्षमा भाव सहित है। गम्भीर व अनंत गुण रत्नों की खान बन जाती है 11) सर्व दोषों व पापों की आलोचना प्रतिक्रमण । इसलिए परम सुखकारी जिणवाणी की श्रद्धा सहित
सहित उत्तम शान्त धर्म व शुक्ल ध्यान है। आराधना करनी चाहिए, अनेक प्रकार के व्रत, नियम, 12) रोगों के दुःखों में भी शान्ति है।
प्रत्याख्यान, तप, सामायिक, संवर, पौषध की 13) जन्म मरण के सर्व दुःखों का अंत करा कर,
आराधना करनी चाहिए । आगमों का ज्ञान प्राप्त सिद्धि का अनंत सुख दिलाने वाला है।
करके तत्व ज्ञान में कुशल होकर बहुत शिक्षाओं के
अनुसार स्वयं को अच्छा ढालना चाहिए। कितने ही 14) ज्ञान सहित व केवल ज्ञान, महाप्रकाश का कारण है।
जीव नंद मणियार के समान, पंचेन्द्रिय पशु पक्षी
भी इस उत्तम संथारे की आराधना करके देव बन 15) आत्मा के दोनों लोको को सुधारती है ।
जाते है, फिर मानव की तो बात ही क्या? धन्य वे 16) महासुख रूप फल जीव के संग चलता है।
आत्माएँ जिन्होनें जिणवाणी की शिक्षाएँ धार कर अरिहंत भगवान गणधर भगवान, सच्चे साधु 'संथारा भगवान' की आराधना की है, करती है व श्रावक वर्ग, समदृष्टि देवों द्वारा तीनों लोकों भविष्य में करेंगी। मे प्रशंसा व प्रसिद्धि प्राप्त है।
देव गुरू धर्म सूत्र के मान उपकार हजार | 18) ज्ञानी का मृत्यु - महोत्सव है।
| मनुष्य जन्म मुझको मिले बार बार |