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________________ करिये - रात्रि भोजन त्याग जैन धर्म से, जैन तत्व से, यदि होवे अनुराग करिये रात्रि भोजन त्याग (२) ॥टेर॥ रात्रि भोजन त्याग भी तप है, कह गए श्री वीतराग । करिये॥ साधु का कहना नहीं माना, खाने बैठा रात में खाना । पत्नी से बोला यहाँ आना, पूरे आम का अचार लाना । मरे चूहे की, पूँछ देख फिर, देखी उसने टांग । करिये... ॥१॥ एक समय रात्रि में भाई, गिरी छिपकली भिंडी माँही । एक ने बड़े की कढ़ी बनाई, मेंढ़क गिरा न दिया दिखाई । खाने बैठा देख कांप गया, बच गया लगा न दाग । करिये... ॥२॥ जलोदर सुंआ से होवें, मकड़ी से कुष्टि हो रोवे । केश खाये वो सुस्वर खोवे, जन्तु भक्ष से कई दुःख होवे । सड़े कपाल बिच्छु खाने से, जिसके फूटे भाग । करिये ... ॥३॥ चिड़िया-कव्वे पक्षी कहाये, रात्रि में वे कभी न खाये । भूखे हो तो भी उड़ जावे, मानव तू तो श्रेष्ठ कहाये । बुद्धिमान है 'केवलमुनि' तो जाग-जाग रे जाग । करिये... ॥४॥ (तर्ज : देख तेरे संसार की हालत....) दयालुता ऐसी भाषा है, जिसे बहरा भी सुन सकता है अन्धा देख सकता है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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