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________________ दुःखों को प्राप्त होते रहते है । ।।सूत्र उत्तराध्ययन | अगले जन्म में केवल ज्ञान पाकर सिद्ध हो जाएंगे। ।। तीर्थंकर भगवान महावीर के सर्व दुखान्त कारी, | नंदन मणियार सेठ ने भगवान महावीर से धर्म सर्व सुखकारी धर्म को प्राप्त करके भी मोह रूचि | सुनकर श्रावक के व्रत ग्रहण किए, परन्तु भगवान, वाले होकर, प्राप्त होते गुणों का आदर न कर, | साधु, नियम, धर्म सब भुला दिए | काल करके उत्पन्न हुए गुणों का भी त्याग कर, दूसरों को भी | अपनी ही बावड़ी में मेंढक बने, पूर्व जन्म याद ऐसी ही प्रेरणा कर, लज्जा शील विनय अनुकंपा आया, तीव्र पश्चाताप हुआ फिर से शील दया संतोष दया को छोड़, पशु भाव की वृद्धि करते हुए, क्षमा सम्बन्धी उनके व्रत धारण कर बेले बेले की बिना सोच लक्ष्य के लुढ़कते हुए, उत्तम कुलों में, तपस्या शुरू कर दी । घोड़े के पांव से घायल हो तीर्थंकर भगवान के अनुयायी अति दुर्लभ कुलों में जाने पर, वहीं से भगवान को वंदना कर संथारा जन्म पाकर भी, उनकी कीमत न समझ आज कर लिया, काल करके पहले देवलोक में देव बने, बहुत सारे बाल युवा वृद्ध अपने हीरा जन्म को अगले जन्म में मानव भव पाकर, केवल ज्ञान की व्यर्थ गंवाते हुए स्पष्ट दिखाई देते है। देवता भी - ज्योत जलाकर, सिद्ध हो जाएंगे | मेघ कुमार के देवलोक में इच्छा करते है - श्रावक कुल में जन्म | जीव ने हाथी के भव में बहुत प्राणियों की आग से को पाऊँ, जिणवर का शुद्ध सत्य धर्म । केवल । रक्षा की, एक खरगोश की रक्षा करते हुए अपने ज्योत जलाऊंगा निज में, तोड़ के जन्म जन्म के प्राण त्याग दिए, राजा श्रेणिक के पुत्र बने, सब कर्म ।। कहाँ आज के मानव जो पशुता की ओर सुख पाए, भगवान महावीर के पास दीक्षा ली, पूर्व बढ़ते हुए, शीघ्रता से शील की लाज आदि उत्तम जन्म का भी स्मरण हुआ, संथारा करके 22 वे गुणों का आदर न करते हुए अपना जीवन व्यर्थ देवलोक में देव बने, अगले जन्म में मनुष्य बन गंवा रहे है ? और कहाँ वे पशु, सर्प, मेंढक, हाथी केवल ज्ञान प्राप्त कर लेगे । भगवान पार्श्वनाथ का आदि के जन्म पाए हुए, मानवीय गुणों में भी विशिष्टता जीव मरूभूति के भव में श्रावक थे, भाई के हाथों को प्राप्त हुए चण्डकौशिक, नंदन मणियार, मेघ मृत्यु हुई, आर्त ध्यान के कारण वन में हाथी बनना कुमार, भगवान पार्श्वनाथ का जीव मरूभूति से पड़ा। हाथी ने अवधि ज्ञानी मुनिजी से धर्म सुना, अगले हाथी भव में धर्म की उत्तम आराधनाएं कर | पूर्व जन्म याद आया, शील, दया, संतोष, क्षमा दुर्गतियों के मार्ग बंद कर सुगतियों को प्राप्त हुए | संबंधी अनेक व्रत नियम धारण किए, काल करके जीव? पूर्वजन्म में साधु होकर क्रोध में काल करने | आराधक होकर आठवें देवलोक में देव बने । और से गति बिगड़ गई, वन में दृष्टि विष सांप का जन्म | भी बहुत सारे पशु पक्षी भगवान महावीर से धर्म पाया, भगवान महावीर का सम्पर्क पाकर सुन सुनकर मानवों से भी विशेष गुणों वाले हुए | महाक्षमावान हो गए, मेरी आंखो से किसी को | धन्य है, ये सब जिन्होंने मोह, पाप, दुःख रूपी जहर न चढ़ जाए? बिल में ही मुख डाल लिया, | कीचड़ दलदल से भरे विस्तृत संसार सागर को चींटीयाँ शरीर खाती रही, हिले तक नहीं, कहीं | पार किया और कितना लज्जा जनक है आज कोई चींटी न मर जाए ? 15 दिन तक पीड़ा सहन | उत्तम कुलों में जन्मे मानवों का, उसी दलदल से की, मृत्यु हो गई, पांचवे देवलोक में उत्पन्न हुए, | भरे संसार सागर में डूबते जाना ? प्रीति कोई लेन देन की चीज नहीं है, वह तो अनुभूति का आस्वाद है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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