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गुणस्थान-गणित
(11,12), 4) मिथ्यादर्शन वत्तिया क्रिया में
(1,3), 5) विकलेन्द्रिय व असन्नी पंचेन्द्रिय यह सर्व लोक संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, __ में (1,2)। अणंताणंत प्राणियों का विशाल अति विशाल भण्डार
तीन - वाट वहता जीव में (1,2,4) 2) समदृष्टि है जो कि समुद्र में जल के समान व धरती में मिट्टी
तिर्यंच में (2,4,5), 3) क्षीण कषायों में के समान, जीवों से ठसाठस भरा हुआ है । सर्व
(12,13,14)4) सयोगी यथाख्यात् चारित्री लोक का एक भी प्रदेश, सई की नोक के असंख्यात्वाँ
में (11,12,13) 5) अमर गुणस्थान (जिनमें भाग जितना सूक्ष्म स्थान भी जीव से रहित नहीं है
जीव काल नहीं करता) (3,12,13), 6) | अवश्य तीर्थंकर भगवान ने अपने सूर्य समान
उपशम व क्षपक दोनों सकषायी श्रेणियों के केवल ज्ञान में जिसका दर्शन किया है, वह जीव
(8,9,10), 7) अप्रमत सवेदि में (7,8,9), समूह, जीव-लोक छदमस्थ व्यक्ति के लिए एक
8) अपर्याप्त में (1,2,4) 9) एकांत महा आश्चर्य है । सम्पूर्ण लोक में जितने भी जीव हैं
अप्रतिपाति में (12,13,14) एवं । उनमें कोई सम्यग् दृष्टि है तो कोई मिथ्यादृष्टि, कोई साधु है तो कोई श्रावक, कोई अविरत है तो
चार - अविरत (अप्रत्याख्यानी) में (1,2,3,4, 2)
अकषायी में एवं यथाख्यात चारित्री में (11कोई असाधु, कोई प्रमादी है तो कोई अप्रमादी, कोई सकषायी, समोही है तो कोई अकषायी अमोही,
14), 3) उपशम श्रेणी में (8-11), 4) क्षपक कोई सवेदी है तो कोई अवेदी, कोई छद्मस्थ है तो
श्रेणी में (8,9,10,12), 5) देव व नारकी कोई केवली । सर्व जीव समूह तो उनके उपरोक्त
में (1-4), 6) सामायिक चारित्री में (6-9) गुणों के आधार से समझने के लिए तीर्थंकर भगवान
7) क्षयोपशम समकित में (4-7), एवं । महावीर ने “चौदह जीव-स्थान' कथन किए । इन्हीं | पाँच - साधु चारित्र के आराधक में (1-5), 2) चौदह जीव-स्थानों को चौदह गुणस्थान भी कहा
श्रेणी में (8-12), 3) शाश्वत गुणस्थान जाता है । अनेक पुस्तकों में इनका विस्तार पूर्वक
(1,4,5,6,13), 4) तिर्यंच में (1-5), 5) वर्णन है। पूर्व आचार्यों उपाध्यायों द्वारा व्यवस्थित,
अनाहारक में (1,2,4,13,14) 6) एकान्त इस गुणस्थान स्तोक, का अध्ययन जिन रूचिवान, अवेदी में (10-14), 7) आठ कर्म वाले ज्ञानवान, पुण्यवान आत्माओं ने कर लिया है, उनके अप्रमत में (7-11), एवं । आगामी अभ्यास व ज्ञान की वृद्धि के लिए आगे एक छह - प्रमादी में (1-6), 2) छहलेश्योमें 6 (1से6) "गणस्थान गणित' विधि कही जाती है
3) अप्रमत छदमस्थमें 6 (7से 12) एक - एक गुणस्थान कहाँ पाए? अथवा किसमें | सात - तेजो लेश्या में (1-7), 2) छदमस्थ साधु में पाए? मिथ्यादृष्टि में (पहला) एवं गुण. के
(6-12), 3) शक्ल ध्यानी में (8-14),4) अपने अपने गुण प्रधान नामों में - जैसे - सयोगी अप्रमत में (7-13), 5) तीर्थंकर प्रमत संयत्त में (छटा), सयोगी केवली में
भगवान द्वारा छद्मस्थ काल में स्पृश्य (4.6(तेरहवाँ) आदि ।
10,12) एवं । दो - दो गुण स्थान किसमें पाए? अणंतानुबंधी | आठ - अप्रमत के (7-14), 2) उपशम समकित में
कषाय में (1,2), 2) केवली मे (13,14), (4-11), 3) हास्य आदि छः प्रकृतियों में 3) यथाख्यात चारित्री छमस्थ में (1-8), 4) प्रत्याख्यानी छद्मस्थ के (5