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________________ करते हुए साढ़े बारह वर्ष की साधना से एक दिन | सुगति व मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होकर भगवान ने चिरवांछित केवल ज्ञान केवल दर्शन | सत्य अर्थ में सुरक्षित हुए । भगवान का संघ जीव प्राप्त कर लिया, उनकी आत्मा ज्ञान प्रकाश से दया व ज्ञान दर्शन चारित्र तप में अग्रणी 50,000 सूर्य समान चमक उठी; तब भगवान लोक अलोक | साधु - साध्वियों 4,77,000 श्रावक श्राविकाओं से के सर्व पदार्थों व भावों के पूर्ण ज्ञाता हो गए। | सुन्दर सुशोभित एवं विशाल था । सत्य है, धर्म तीर्थंकर नाम कर्म का उदय होने से भगवान 34 | है, उपदेश व प्रचार विहार में महापराक्रमी सिंहो के अतिशय 35 वाणी के गुणों से सम्पन्न हुए । देवों सिंह थे तो भगवान महावीर, सर्व लोक में सत्य द्वारा रची गई अनुपम समोसरण में भगवान ने देव ज्ञान का प्रकाश करने वाले व सैंकड़ो नए केवल मानव तिर्यंचों की परिषद में सत्य धर्म का महा ज्ञानी रूपी सूर्यों का निर्माण करनेवाले सूर्यों के भी उपदेश किया । भगवान की तत्व ज्ञान प्रकट करने सूर्य थे, तो भगवान महावीर, शील, क्षमा, संतोष, की उपदेश कला सर्व लोक में अद्वितीय थी । “सव्व गंभीरता आदि सच्चे गुण रत्नों से भरपूर सागरों में जगजीव रक्खणदयट्टयाए पावयणं भगवया महासागर समान थे। उनके जीवन से प्रेरणा पाकर सुकहियं.."|| प्रश्न व्याकरण सूत्र | “जगत के सब आज हम भी सब जीवदया में, अग्रणी बनें । जीवों की रक्षा दया के लिए भगवान ने प्रवचन माँस, अण्डे शराब जैसे गंदे पदार्थों के दढ त्यागी कहा; सब जीव कीड़ी हो या हाथी, वनस्पति हो बनें, माँस आदि मिलावट वाले पदार्थ काम में न या मानव, देव हो या दानव एक समान रूप से लें, जुए, शिकार, चोरी पर स्त्री गमन जैसे कुव्यसनों जीवन के अभिलाषी है, सब जीव जीना चाहते से कोसों दूर रहें, त्रस जीवों की संकल्पी हिंसा व है, कोई मरना नहीं चाहता, इसलिए किसी भी अनर्थ दण्ड के दृढ़ त्यागी बने, 14 नियम, जीव को न मारना चाहिए, न ही दुख देना चाहिए, सामायिक, संवर, पौषध, रात्रि भोजन व सचित सबको अपने अपने आयु प्राण जीवन प्रिय है" | जल वनस्पति व अब्रह्मचर्य के त्याग सहित अनेक भगवानं ने पांच महाव्रत रूप अखण्ड मोती साधु तपस्याएँ व ज्ञान आराधनाएँ करें, मांसाहार परोसे धर्म का व अपनी अपनी शक्ति अनुसार अल्प हुए बर्तनों का भी जीवन भर त्याग करें और अनेक अधिक ग्रहण करने योग्य स्वर्ण समान 12 व्रत रूप नियम धारण कर श्रावक धर्म, साधु धर्म को उच्च “श्रावक धर्म" का उपदेश किया । भगवान के समीप स्थान पर स्थापित करें। भगवान महावीर के उपदेश सिंह, बकरी, सर्प, नेवला, बाज, कबूतर भी सर्व सुनकर राजा श्रेणिक ने राजगृही में सर्व पशु पक्षी वैर भय से रहित होकर धर्म श्रवण करते थे व वध पर रोक लगा दी थी । इस युगमें आज भी अनेक व्रत नियम पालते थे। इस प्रकार जीव दया सारे कसाई खाने बंद हो, देश परदेश में सर्व पशु के महा उपदेश से जीवों की महादया हुई व जीव पक्षी वध पर पूर्ण अमारि लागू हो, छोटे प्राणियों दया का पालन करने वाले अपने अपने कर्म क्षय की भी दया हो । करते हुए सच्चे सुख शान्ति समाधि के मार्ग पर । किसी की निंदा नहीं करना, किसी की चुगली नहीं करना। किसी को गाली नहीं देना, किसी से झगड़ा नही करना। शांति सुख को पाना हो तो धर्म ध्यान करना।। स्थाई।।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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