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________________ ( विचित्र प्रश्न कारण सुबाहु कुमार को ऐसी रिद्धि प्राप्त हुई है । हे भगवान ! क्या सुबाहु कुमार आप देवानुप्रिय के तए णं से भगवं गोयमे... समणं भगवं चरणों में दीक्षा धारण करेगा? हाँ गौतम! सुबाहु महावीरे... वंदइ नमसइ... विणएणं... एवं वयासी कुमार गृहवास का त्याग करके दीक्षा धारण करेगा इह भविए भंते । णाणे परभविए णाणे तदुभय | बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन करके भविए णाणे? गोयमा! इहमविए विणाणे परमविए सुबाहु कुमार अंत में काल धर्म को प्राप्त हुए । तब वि णाणे तदुभय भविए विणाणे | इन्द्रभूति गौतम गौतम स्वामीने भगवान महावीर को वंदना की और भगवान ने श्रमण भगवान महावीर को वंदना नमस्कार पूछा - हे भगवान ! सुबाहु कुमार मुनि काल करके किया और विनय पूर्वक हाथ जोड़कर इस प्रकार कहाँ उत्पन्न हुए? हे गौतम! सुबाहु कुमार आलोचना पूछा - हे भगवान ! ज्ञान क्या इस जन्म में होता है प्रतिक्रमण सहित संथारा करके काल धर्म को प्राप्त - हे गौतम ! ज्ञान इस भव में होता है, अगले भव होकर पहले देवलोक सौधर्म कल्प में उत्पन्न हुआ में भी होता है, और भी अनेक भवों में होता है। ... है । वहाँ सुखपूर्वक अपनी आयु पूरी करके फिर भगवती सूत्र । इस जन्म में प्राप्त हुआ ज्ञान अगले मनुष्य बनेगा । फिर से धर्म की आराधना करके जन्म में व आगे और भी जन्मों में उदय में आता सनत्तकुमार नामक तीसरे देवलोक में उत्पन्न होगा, है, जिससे जीव का मार्ग दर्शन बना रहता है इस प्रकार अनेक बार मनुष्य देव के भव करते हुए 5 और वह ज्ञानी आत्मा संसार में भटकता नहीं । वे, 7वे, 9वे, 11वे, 26वे देवलोक में उत्पन्न होगा, श्रमण भगवान महावीर के चरणों में सुबाहु कुमार इस प्रकार अनेक बार मनुष्य जन्म पाकर धर्म के द्वारा श्रावक धर्म ग्रहण करके जाने के बाद गौतम आराधना करके केवल ज्ञान प्राप्त करके सिद्ध हो स्वामी जी ने भगवान को वंदना करके पूछा - हे जाएगा। विपाक सूत्र | सातवें देवलोक से दो देव भगवान! सुबाहु कुमार इष्ट प्रिय रूप वाला है, चित्त भगवान के पास आए, मन से ही वंदना की, मन से को आनंद देने वाला है, साधुजनों के चित्त को भी ही प्रश्न किया । भगवान ने मन से ही उत्तर दिया प्रसन्न करने वाला है, इसने ऐसी रिद्धि कैसे प्राप्त । यह सब देखकर गौतम स्वामीजीने भगवान से की ? पूर्व जन्म में यह कौन था ? इसने कौनसा देवों की जिज्ञासा जाननी चाही तो भगवान ने कहा उत्तम कार्य किया था ? श्रमण निर्ग्रन्थो से क्या एक | - वे देव स्वयं ही तुम्हारे पास आकर कहेंगे । तब भी आर्य वचन सुनकर मन में धारण किया था ? दोनों देव गौतम स्वामीजी के पास आए, वंदना जो यह ऐसी उत्तम सिद्धि से सम्पन्न हुआ है? तब करके कहा - "हमने भगवान से इस प्रकार पूछा, भगवान महावीरने कहा - हे गौतम ! सुबाहु कुमार आपके कितने शिष्य केवल ज्ञान प्राप्त करेंगे ?" पूर्व जन्म में सुमुख नाम का गाथापति समृद्ध तब भगवान ने फरमाया - “मेरे सात सौ शिष्य गृहस्थ था । इसने मास खमण के पारने के लिए केवल ज्ञान प्राप्त कर केवली होंगे' | भगवती सूत्र पधारे सुदत्त नाम के अणगार को प्रिय भाव से मन | । गौतम स्वामीजी के भ्राता दसरे गौतम अग्निभति वचन काय की शुद्ध प्रवर्तना करते हुए हर्ष के साथ अणगार ने श्रमण भगवान महावीर को वंदना नमस्कार निर्दोष आहार का प्रतिलाभ दिया था, तब इसने | किया और पूछा - हे भगवान ! भवनवासी देवों में अपने अनादि संसार परिभ्रमण को सीमित कर | असरकमारों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र कितने लिया और अगले जन्म के लिए मनुष्य आयु का | नए नए रूप बना सकता है ? “हे गौतम! चमरेन्द्र बंध किया, देवों ने भी तब पंचवृष्टि की । इस । असुरराज असंख्य योजनों का क्षेत्र, असंख्य रूप
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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