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________________ अपने अपने गुणों की विशेषता- मंदता के कारण | साधर्मी विनय के लिये सामायिक करते हुओं के भिन्न भिन्न लाभ वाली होती है। सामायिक का बार सामायिक लेकर ही चरण स्पर्श करें, कोई खुले बार अभ्यास करने से जिन्होनें सामायिक में अपना भाई आते हो, तो शिष्टाचार के लिए खड़े होकर या चित्त स्थिर कर लिया हो, सामायिक के सत्य अर्थ बैठे ही हाथ जोड़कर जयजिनेन्द्र कर सकते है । को समझकर करने का प्रयत्न किया हो, तो ऐसे परन्तु आगे और संसारी बात न करें, चाचा मामा सामायिक धारी श्रावक जी एक सामायिक मात्र में आदि सम्बंध कहकर किसी को भी पुकारे नहीं । इतने कर्म खपा लेते हैं, जितने हजारों लाखों सामायिक में शील व्यवहार रखते हुए धर्म चर्चा वर्षों में नरक का नारकी दुःख महादुःख भोगते करनी चाहिए, पूछना भी चाहिए । उत्तर भी देना हुए खपाता है । इसका क्या कारण है ? - नरक के चाहिए, यह साधर्मी विनय व ज्ञान वृद्धि है । सामायिक नारकियों के कर्म लोहे की तरह दृढ़ होते हैं, बहुत में यं ही किसी की निंदा आलोचना, व्याख्यान आदि दुःख पाकर भी बहुत कम कर्म नष्ट करते हैं, की तैयारी बस आत्मा के प्रयोजन, आहार, इनाम सामायिकधारी ने अपने कर्म आसानी से कटने आदि सावध कार्य बातों मे समय पूरा न कर योग्य लकड़ी की तरह ढ़ीले किए होते है, अल्प सामायिक का जो मुख्य प्रयोजन आत्म ज्ञान की परिश्रम से भी बहुत कर्म नष्ट करते प्राप्ति, चिंतन, ध्यान है, उसी में लीन रहें । पुस्तकें आदि में भी समय न गवाएं, परन्तु स्वयं भगवती सूत्र के आधार से, स्व चिंतन से ऐसा खुले हों, और पौषध धारी की सेवा करनी हो तो लिखा है । पूर्णिया श्रावक जी की सामायिक को सामायिक लेकर करनी चाहिए। जानना चाहिए। श्रावक कुण्डकौलिकजी की सामायिक को समझना 2) सामायिक में व्यवहार : सामायिक में 18 पापों चाहिए । तत्त्व केवली गम्य । का दो करण तीन योग से त्याग रहता है । खुले व्यक्ति को आना जाना आदि कार्य करने से हिंसा 3) सामायिक की स्थिरता : सामायिक सदा अनुकूल आदि पाप उत्पन्न होने की संभावना होती है, इसलिए क्षेत्र में, आसन पर ही की जाती है, बिना आसन खुले व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार न करना चाहिए, के नहीं, उससे चित्त की स्थिरता रहती है, स्वाध्याय कोई धार्मिक पुस्तक, माला देनी पड़े तो अलग, में मन आसानी से लग जाता है वरना चंचल होकर एक वस्त्र पर रख देनी चाहिए, हाथ से हाथ में न बार बार स्थान बदलते रहने के भाव बन सकते दे, इसी प्रकार वापस भी ले सकते हैं | स्वयं को है; मुख वस्त्रिका न लगाई तो, एक तो जीव हिंसा कोई वस्तु चाहिए तो पूछ कर लेनी चाहिए, बिना होती है, दूसरे सामायिक की स्मृति न रहे तो स्मृति पूछे नहीं । सामायिक में सामायिक करते हुओं के | | आ जाती है और व्यक्ति बिना पारे यूं ही उठकर साथ ही व्यवहार होता है, अन्य के साथ नहीं, फिर नहीं जाता व देखने वालों को भी पहचान रहती है भी यत्नवान अयत्नवान देखकर आवश्यकता पडे कि ये सामायिक कर रहें है । इस तरह सामायिक तो व्यवहार कर सकते है । यत्नवान विवेकवान से में आसन (स्थान) बदला नहीं जाता, पहले ही व्यवहार करना अच्छा है, सामायिक नहीं करते के | साधर्मी विनय व्यवहार अनुकूल होकर बैठना चाहिए साथ व्यवहार करे तो दोष है परन्तु जैसे मुनिराज | फिर भी किन्हीं आवश्यक कारणों से एक दो बार यतना करवाते हुए आहार लेते है, इसी तरह यतना स्थान बदलना भी पड़ जाता है । गुरुदेवों के पास करते व कराते हुए करें तो दोष नही रहता । | जाकर पूछने के लिए साधर्मियों के पास जाकर धर्म
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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