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कुछ जन्मों में तिरेंगे, सिद्ध होंगे सब दुखों का अंत | को प्राप्त करना, समझना व आत्म लाभ उठाना, करेंगे । नमो सिद्धाणं । सामायिक की जय हो यही सामायिक में किया जाता है, स्वाध्याय (आत्मा विजय हो।
का अध्ययन) करना, स्वयं को ऊँचा उठाना । तत्व केवली गम्य
माला, आनुपूर्वी धुन, जाप स्तुति, धर्म कथाएँ,
ज्ञान की पुस्तकें पढ़ना, ध्यान करना, पाप त्याग सामायिक ज्ञान - 3
व आत्म विकास का चिंतन करना, तत्व ज्ञान, 1) सामायिक इच्छा पूर्ति के लिए या आत्म
थोकड़े सीखना, शास्त्र सुनना, सीखना, सुनाना
आदि । शुद्धि के लिए ? सामायिक का अर्थ ही है सम आय-समाय, समभाव, समता की आय, 3) दान पुण्य श्रेष्ठ है या सामायिक? आत्मा में प्राप्ति, उत्पत्ति, स्थिरता और वह तभी सम्भव है अनुकंपा का गुण होने से दुःखी का दुःख दूर जब सामायिक में सर्व 18 पापों व सर्व इच्छाओं करने की रूचि उत्पन्न होती है, इससे आत्मा ऊँची का एक मुहुर्त के लिए त्याग किया जाता है । अवश्य उठती है परन्तु एक दो पाए ही, पूरी जन्म-जन्म से मैली आत्मा, इसी से शुद्ध होती है, | सीढ़ी तो सामायिक और तप से ही चढ़ी जाती इसी से कर्म हल्के पड़ते हैं व आत्म विकास होता है है, इसके बिना नहीं । धन भोजन आदि का दान । गेहूँ खरीदा जाए तो जौ अपने आप ही प्राप्त हो । अहिंसा के लिए ही किया जाता है, ऐसा विवेक जाती है, इसी तरह निर्जरा के लिए की गई रखते हुए भी यह दान दूसरे अनेक त्रस स्थावर सामायिक में महापुण्य का बंध अपने आप होता जीवों की हिंसा के बिना संभव नहीं होता, इसलिए है, अशुभ कर्म हल्के पड़ने से, पहले के किए पुण्य पूर्ण शुद्ध भी नहीं होता । सामायिक में छोटे से छोटे भी उदय में आते है | सामायिक का वास्तविक जीव की जरा भी हिंसा नहीं की जाती, सब जीवों लक्ष्य सुख दुःख में न राग रखना न ही द्वेष, राग | को एक समान रूप से अभयदान (दया दान) दिया और द्वेष से रहित आत्म शान्ति की प्राप्ति करना जाता है (दाणाण सेतुं अभयप्पयाणं सूत्र कृतांग ही है। फिर भी कोई संसारी इच्छा से ही सामायिक | सूत्र), दोनों में अभयदान सर्व श्रेष्ठ है । इसलिए करते हैं तो, एक और सामायिक सर्व इच्छाओं से सामायिक में दिया जाने वाला अभयदान पूर्ण रूप रहित केवल आत्मा के लिए भी अवश्य करनी चाहिए से शुद्ध, सर्वश्रेष्ठ, महानिर्जरा व महापुण्य कारी | वही वास्तविक सामायिक व मनुष्य जन्म का वास्तविक होता है, फिर आत्म ज्ञान की प्राप्ति भी सामायिक लाभ है।
में ही संभव हो पाती है, इसी से आत्मविकास 2) सामायिक में क्या करना चाहिए? मोहोदय
विधि का ज्ञान व रोशनी प्राप्त होते है । अनुकंपा
दान की तीर्थंकर देव ने मनाई नहीं की है। से उत्पन्न होने वाली संसार की भागदौड़ व आर्तध्यान को छोड़कर आत्म शान्ति, धर्म ध्यान की प्राप्ति ही 4) सामायिक की रूचि किस प्रकार होनी चाहिए? सामायिक का मुख्य लक्ष्य है । आत्मा के ज्ञान से | तरूण को जैसे नाच गाने में, कुछ दिन के भूखे को ही इसकी प्राप्ति होती है, और आत्म ज्ञान के | बादाम आदि युक्त मीठी खीर प्राप्त होने पर, खोया एक मात्र आलम्बन तीर्थंकर भगवान ही होते है। हुआ बालक प्राप्त हो जाने पर जैसे माँ को, खोया इसलिए भगवान का स्मरण करना, वंदना, उनकी . हुआ कीमती रत्न वापस प्राप्त होने पर जैसे वणिक आज्ञा का पालन करना, उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान | को रूचि, हर्ष, प्रसन्नता उत्पन्न होते है, सामायिक