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________________ 6) क्या सामायिक अनादि से है ? एक कदम आगे-आगे बढ़ते, ये सब प्राप्त होना, सामायिक अनादि काल से चली आ रही है, बहुत-बहुत दुर्लभ है, अनंत अंतराय टूटने व . महापुण्योदय होने पर ही किसी किसी महा अनंत काल तक चलती रहेगी, सभी तीर्थंकर भगवान अपने-अपने ज्ञान से अपनी-अपनी इच्छा से भाग्यशाली को वास्तविक महादुर्लभ सामायिक की सामायिक धारण करते हैं, केवल ज्ञान पाकर फिर प्राप्ति होती है। भटकने के लिए चार गति संसार परिषद में सामायिक का उपदेश देते हैं। इस तरह बहुत दूर-दूर तक बहुत विशाल है और मनुष्य क्षेत्र वह भी सामायिक के योग्य बहुत अल्प है । धूल व्यक्ति की अपेक्षा से सभी तीर्थंकर भगवान, सामायिक प्रारंभ करते हैं व प्रवाह की अपेक्षा से चंकि तीर्थंकर कंकर कंटक प्राप्त होने आसान है परन्तु कोहिनूर भगवान अनादि काल से होते आए हैं अनंत काल का रत्न प्राप्त होना कठिन है, धरती में मिट्टी के तक होते रहेंगे इसलिए सामायिक भी अनादि काल कण गिनने आसान है परन्तु सामायिक की प्राप्ति अति कठिन है। से है, अनंत काल तक होती रहेगी । सामायिक से अनंत जीवों ने केवल ज्ञान पाया व अनंत जीव 9) सामायिक कौन नहीं करते? केवल ज्ञान पाते रहेंगे, भरत, ऐरावत, महाविदेह सभी 15 कर्म भूमि के सामायिक धारी मनुष्य । बुद्धि हीन, सुखों में लीन, घूमने, फिरने, नाचने, गाने, खाने, पीने, सोने, फालतू खर्चों 7) सामायिक में चार प्रकार की शुद्धि क्या है? की अधिक रूचि वाले, मंद, भाग्यहीन व आलसी सामायिक की क्रिया, चारित्र व सामायिक की जन सामायिक नहीं करते । पर्यटन, क्लबों, भावनाओं के अनुकुल, सामायिक में सहायी, सामायिक सोसायटी मीटिंगो, राजनीति में रुचि वाले विकथा के पूरक 1)द्रव्य, 2)क्षेत्र, 3)काल, 4)भाव को तथा दर्शन यात्राओ के रसिक लोग प्रायः सामायिक अपनाकर सामायिक करना, यही चार प्रकार की | से दूर ही रहते हैं। वर्तमान में इन्द्रिय विषयों की शुद्धि है । आसन पूंजनी माला धोती दुपट्टा आदि दौड़, टी.वी, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि के अति व्यवहारानुकूल सामान्य रखना, न कि विशेष कीमती भोग ने, स्त्रियों द्वारा पुरुषोचित पहनावा, व्यवहार व शोभाजनक चक्षु को आकर्षक एवं आभूषणों का आदि ने तो सामायिक से लोगों को बहुत दूर कर त्याग, यह द्रव्य है; सादा व शोर रहित, जीव दिया है । सत्संग छुटता जा रहा है। रहित एकांत स्थान, यह क्षेत्र शुद्धि है, संसारी 10)सामायिक किन्होंने की? कार्यो चिंताओं से रहित काल, यह काल शुद्धि है; 18 पाप के त्याग व सुदेव सुगुरू सुधर्म में भक्ति, पूर्णिया श्रावकजी, शंख, आनंद, कुंडकौलिक आराधना भरी भावनाएं, यह भाव शुद्धि है। आदि बहुत श्रावको ने की, सुभद्रा आदि बहुत 8) सामायिक कितनी सुलभ है? श्राविकाओं ने की, गौतम स्वामीजी आदि बहुत श्रमणों ने, चंदनबालाजी आदि बहत श्रमणियों ने सामायिक सुलभ नहीं अति दुर्लभ है, आर्य की। क्षेत्र, सत्य धर्म, अल्प सख दःख, धर्म रूचि, अल्प मोह, धर्म श्रद्धा, सामायिक का ज्ञान, 11)क्या फल पाया? सामायिक में श्रद्धा, रूचि फिर समय निकालना, कोई उसी जन्म में तिर गए, सिद्ध हो गए, धर्म करना, सामायिक को जीवनमें उतारना, एक कोई अगले जन्म में तिरेंगे, सिद्ध होंगे, कोई और
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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