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________________ क्रोध उत्पन्न नहीं होता, होता है तो उसे नष्ट कर अनेक प्रकार की क्रियाएँ करने में समर्थ है, जो देती है; जिसमें मान माया लोभ उत्पन्न नहीं होते, | निर्गुण नहीं है। ज्ञान क्षमा आदि अनेक गुणों का होते हैं तो नष्ट कर देती है; जो अहिंसा, सत्य स्वयं में अनंत विकास करने में समर्थ है, जो स्वयं अचौर्य शील अपरिग्रह को समझती है, इन पाँचों कर्म की कर्ता है, स्वयं फल की भोक्ता है, जो जन्म को भगवान मानती है, पाँचो की आराधना करती मरण करती है, जो पहले भी थी, इस जन्म में भी है; जिसमें राग द्वेष मोह उत्पन्न नहीं होते, होते है, अगले जन्मों में भी होगी, जो संसार भ्रमण का हैं तो नष्ट कर देती है; जो श्रावक धर्म का ज्ञान अंत करके सिद्ध भगवान बनने में समर्थ है, वही करती है, साधु धर्म का ज्ञान करती है, एक को मैं एक अज्ञानी गुण विकास की इच्छुक वर्तमान में शक्ति के अनुसार धारण करती है वह प्रिय आत्मा गुणों की प्राप्ति में प्रयत्नशील संसारी विकारी है जो देव बनती है, मनुष्य बनती है, सिद्ध होती असिद्ध आत्मा चेतन है। . है, अनादि अनंत । प्रतिज्ञा पत्र केवली वचन पर विश्वास करके जो सूर्य समान ज्ञान (दीपावली निर्वाण कल्याणक प्रसंग पर) से प्रकाशित होकर सर्व पदार्थों को जानती है, दर्शन मै आज यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं इस वर्ष दीपावली महोत्सव पर पटाखें नहीं छोडूंगा, क्योंकि से सर्व पदार्थों को देखती है, उनके सत्य वास्तविक यह एक महा अपराध है। प्रतिज्ञा, मैं अपनी स्वेच्छा स्वरूप पर श्रद्धा विश्वास करती है; चारित्र से कर्म बंध के कारणों को नष्ट करती है, व्यक्ति को सच्चा से सहर्ष स्वीकार करता हूँ | यह प्रतिज्ञा मैं गुरुदेव दोषी न मानकर अपने ही कर्मों को सच्चा दोषी श्री के समक्ष करता हूँ। इसका पच्चक्खाण करके, आज मैं बाल मजदूर प्रथा बंद करने में सहयोगी मानती है, तप से पूर्वकाल के बांधे कर्मों को नष्ट बनता हूँ । अतः आप सभी इस प्रेरणा को सहज करके दुर्गति का अंत करती है, सुगति को प्राप्त स्वीकार करें। भगवान महावीर का संदेश करती है, वही सुन्दर गुणचन्द्र आत्मा है। (संयम से जीओ और जीने दो) जिसका न तो कोई निर्माता ही है, न ही जिसका विनाश सम्भव है, जो सर्व व्यापक नहीं है, सर्व प्रतिज्ञा धारणकर्ता : शक्तिमान भी नहीं है, जो निष्क्रिय नहीं है, उपरोक्त नोटः सैंकड़ो लोगों ने पटाखें नहीं फोड़ने के नियम लिए। लक्ष्य को पानेवाला राही प्रतिपल चलेगा ही, बोया है बीज तो निश्चित रूप से फलेगा ही खरगोश की दौड़ प्रतियोगिता कछुआ नहीं हारा, करते रहो पुरुषार्थ तो समझो फल मिलेगा ही ।। ★★★★ तुम ऊतने ही ऊपर उठ सकोगे, जितने ऊँचे तुम्हारे विचार है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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