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________________ 90. क्रोध न करने से वाणी में मिठास व 111. क्रोध करने से शारीरिक व मानसिक शक्तियाँ प्रभाव रहता है। क्षीण होती हैं। 91. क्रोध न करने से मन स्वच्छ व तनाव रहित | 112. क्रोध से दूसरा तो नहीं, क्रोध करनेवाला रहता है। स्वयं भस्म हो जाता हैं। 92. क्रोध से निकली वाणी जहर है। 113. क्रोध अग्नि है, यह अग्नि आत्मा के अनमोल 93. क्रोध के शब्दों का घाव नहीं भरता, जबकि गुणों को भस्म कर देती है । शस्त्र का घाव भर जाता है। 114. क्रोध रूपी शत्रु का दमन “क्षमा" रूपी शस्त्र 94. क्रोध से निकली वाणी अहंकार पर चोट से होता है। करती है, जिससे क्रोध उत्पन्न होता है। 115. जब तक क्रोध रहे, तब तक चुप रहे । 95. जर-जोरु जमीन के कारण क्रोध की उत्पत्ति 116. क्रोध त्यागने के लिए मांसाहार त्यागने का होती है। संकल्प करें। 96. खेत, वस्तु, शरीर और उपधि के कारण 117. मदिरापान भी क्रोध उत्पन्न करने का कारण क्रोध उत्पन्न होता है। 97. अनुचित व्यवहारों से क्रोध उत्पन्न होता है। 118. क्रोध को विवेक से जीता जा सकता है । 98. स्वार्थ पूर्ति में बाधा पड़ने पर क्रोध उत्पन्न 119. सहिष्णुता-क्षमा भाव से क्रोध शांत हो होता है। जाता है। 99. भ्रम के कारण क्रोध उत्पन्न होता है। 120. क्रोध की बीमारी का इलाज समता भाव से 100. अधिक परेशान करने से क्रोध उत्पन्न होता हो जाता है। 121. क्रोध नहीं करने से मन स्थिर रहता है । 101. धोखा देने से क्रोध उत्पन्न होता है। 122. क्रोध नहीं करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 102. झूठ से क्रोध उत्पन्न होता है । 123. क्रोधं पाप है। 103. गाली, अपशब्द से भी क्रोध उत्पन्न होता 124. क्रोध से अनेक नुकसान हैं। 125. समझदार लोग क्रोध नहीं करते । 104. वैर भाव से क्रोध जन्म लेता है। 126. क्रोध करने से चेहरा विकृत हो जाता है। 105. दुर्वचन सुनते ही क्रोध आता है । 127. क्रोध करने से हृदय की धड़कन तेज हो 106. क्रोध भयानक दावानल है। जो भी आता है जाती है। भस्म हो जाता है। 107. जीवन रूपी प्याले में क्रोध जहर है। 128. खून का भ्रमण तेजी से होता है। 108. क्रोध नेत्रशील को भी अंधा कर देता है। 129. शरीर जूझने लगता है। 109. क्रोधी, पापी और कपटी का संग छोड़ 130. पाचन क्रिया मंद हो जाती है। देना चाहिये। 131. मानसिक संतुलन गुम हो जाता है। 110. क्रोध करने से रक्त विष बन जाता है। । 132. क्रोध से कुटुम्ब व संघ में क्लेश होता है ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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