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________________ 48. क्रोध से बाह्य परिवर्तन : 66. क्रोध से आत्मा का पतन होता है। क) आँख लाल, ख) चेहरा लाल, 7. क्रोधी व्यक्ति चारों गति में परिभ्रमण करता ग) भौंहे तन जाती है, घ) नाक के नथुने फड़कने लगते है। क्रोधी हर जगह से अनादर पाता है । ठ) हाथों की मुट्ठियाँ कसने लगती है । क्रोध को शांत करने के लिए मन को शांत करने का प्रयत्न करें। छ) दाँत बार बार बंद होते है । ज) ऊँची आवाज में बोलता है क्रोध न करने से तपस्या का पूरा फल मिलता है। झ) अपशब्द गालियाँ निकालता है । क्रोध नहीं करने से मनमुटाव नहीं होता 49. क्रोध से शरीर में अंतरंग परिवर्तन : है । आत्मा को शांति मिलती है। क) दिल की धड़कन तेज | 72. क्रोध न करने से शत्रु भी मित्र बन जाते है। ख) सांस की गति तेज 73. क्रोध करने से श्वास की बीमारी हो जाती है। ग) शरीर की शक्ति बढ़ जाती है 74. क्रोध करने से चेहरा डरावना हो जाता है। (आपे से बाहर होना) व कभी कभी हार्टफेल 75. क्रोध से रक्तचाप हो जाता है। तक हो जाता है। 76. क्रोध से हृदय गति रूक जाती है । 50. क्रोध में सब विपरीत दिखता है । 77. क्रोध से मस्तिष्क गरम हो जाता है । 51. क्रोध में सौंदर्य नहीं दिखता । 78. अधिकांश रोग का कारण ही क्रोध है । 52. क्रोध में रोटी जली दिखेगी । 79. क्रोध न करने से व्यक्ति शक्तिशाली बनता 53. क्रोध में पत्नि शूर्पनखा दिखेगी । 54. क्रोध में पति रावण दिखेगा । 80. क्रोध न करने से सबका प्रिय होता है। 55. क्रोध में पुत्र दुश्मन दिखेगा । 81. क्रोध न करने से विवेक की प्राप्ति होती है। 56. क्रोध में पड़ोसी शत्रु दिखेगा । 82. क्रोध से प्रीति का नाश होता है । 57. क्रोध में गुरु में दोष दिखेगा । 83. क्रोधी व्यक्ति के पास कोई नहीं रहना चाहता 58. क्रोध में सब्जी में नमक कम लगेगा । 59. क्रोध में मिठाई फीकी लगेगी । 84. क्रोध उद्वेग पैदा कर सद्गति का नाश 60. क्रोध में वैद्य यमदूत दिखेगा । करता है। 61. क्रोध में हितेच्छु बिच्छू लगेगा । 85. क्रोध से चाण्डाल प्रवृत्ति पनपती है । 62. क्रोध में बाप सांप लगेगा । 86. क्रोध से राक्षसी भाव पैदा होता है । 63. क्रोध में पूजा नही, पिटाई करेगा । 87. क्रोध मौत की जड़ है। 64. क्रोध में माँ चुडैल दिखती है । 88. क्रोध से मन चंचल हो जाता है। 65. कैंसर की गांठ से भयंकर बैर की गांठ है। । 89. क्रोध से ज्ञान चक्षु बन्द हो जाते है ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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