SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 59. अतिथियों का योग्य आदर नहीं हो रहा है। | ( समस्याओं का समाधान ) 60. गुरुओं के पास जाने में संकोच हो रहा है। 1) कम खाना2) गम खाना 3) और नम जाना 61. पिता कहता है, बेटे मेरे पास बैठते नहीं । आत्मरक्षा के तीन उपाय :62. हर व्यक्ति कहता है कि मेरी तबीयत ठीक 1. उचित ढंग से विवेकपूर्वक समझना और नहीं रहती। समझाना। 63. SATISFACTION (सन्तुष्टि) नहीं है । 2 मौन रहना। 64. बेटा बहू खर्चा नहीं देते । 3. उस स्थान को छोड़ देना । 65. माँ को एक बेटा रखता है, पिता को दूसरा । A. अपनी दिनचर्या को नियमित किए बिना समाधान की बजाय समस्याएं बढ़ती ही जावेगी । 66. बच्चे धर्म स्थान में नहीं जाते है । B. मानव भव में "निवृत्ति” की तरफ बढ़ने से समस्याएं 67. पत्नी खर्चीली बहुत है। कम होती ही जाएगी। 68. पति कंजूस है । चुपचाप रहते है । C. इस दुनिया के सभी प्राणी एक विचार और 69. दूसरों की निन्दा चुगली करती रहती है। | समान रूचि वाले नहीं होते। 70. दूसरों की पंचायती (पूछताछ,Enquiry) करती D. इस दुनिया के प्राणियों में विचार भेद था, है व रहती है। रहेगा, 71. ऐसे वचन बोलती रहती है, जो दिल में E. परन्तु धर्म का सच्चा फल या लाभ “मन भेद नहीं रखना" काँटो की तरह चुभते हैं। 72. बड़े हर समय उपदेश देते रहते हैं। E भगवान महावीर स्वामी ने सुखी बनने का शाश्वत उपाय बताया कि “कामे कमाहि कमियंखुदुक्खं" - 73. मित्र से परेशान हूँ। अर्थात इच्छाओं, कामनाओं को कम करने से, निश्चय 74. ससुराल वाले हरदम मेहमान बनकर आते । में आपका दुःख दूर होगा । रहते है। ( SWEET समाधान ) 75. पत्नि पीहर वालें की प्रशंसा करती है। | 1. । अपेक्षाएं कम होगी उतनी ही उपेक्षाएं कम 76. घर में विनय विवेक घट रहा है। होगी। 77. बड़ो का कहना नहीं मानते । गुरुओं के | 2. Let Go जाने दो (क्षमा करो)(संतोष व दर्शन नहीं करते है। सहनशीलता ये दोनों आत्मा के गुण है)। 78. तीर्थयात्रा के नाम पर पिकनिक हो रहा है। | 3. आत्म-लक्षी बनो। 79. धार्मिक किताबें पढ़ने की रुचि घट रही है। गुरुओं की सत्संग का लाभ उठाओ 80. समाज मे परस्पर एक दूसरे की बुराई करते एक मौन हजार दोषों से बचाती है । 6. मैत्री सभी जीवों से करो । गुणवानों के गुणों का अनुसरण करो । गुणी को देख प्रमोद 81. नींद बराबर नहीं आती है। (प्रसन्नता) भाव लावो ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy