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________________ पच्चीस बोल स्वरूप : ( कविता रूप में) संक्षिप्त परिभाषा : 1) पहला बोल 4 गति 2) दूसरा बोल 5 जाति 3) तीसरा बोल 6 काया 6) छठा बोल 10 प्राण = त्रस स्थावर को कहते, काया । 4) चौथा बोल 5 इन्द्रिय = विषय ग्रहण करता है इन्द्रिय। 5) पाँचवा बोल 6 पर्याप्ति = शक्ति विशेष को कहते, पर्याप्ति जीवन का सहारा, प्राण | 7) सातवाँ बोल 5 शरीर - जीर्ण-शीर्ण होता, शरीर । 8) आठवाँ बोल 15 योग = मन-वचन काया की प्रवृत्ति को कहते, योग । 9) नवमाँ बोल 12 उपयोग= सामान्य विशेष को जानना, उपयोग । 10) दसवाँ बोल 8 कर्म = मर कर जाना कहते गति । समान इन्द्रिय समूह, जाति। = 13) तेरहवाँ बोल 10 मिथ्यात्व 14) चौदहवाँ बोल 9 तत्व 1. चौदहवाँ जीव तत्व = 2. चौदहवाँ अजीव तत्व = 11) ग्यारहवाँ बोल 14 = कर्म विशुद्धि मार्गणा को गुण स्थान कहते गुणस्थान | 12) बारहवाँ बोल 23 विषय सूक्ष्म रज, आत्मा में लगी, को कहते कर्म । 240 विकार = विषय पर राग-द्वेष को कहते, विकार । अयथार्थ श्रद्धा को कहते, मिथ्यात्व | = = शब्द रूप-गंध-रसस्पर्श को कहते, विषय । = = • वस्तु के वास्तविक स्वरूप = को कहते, तत्व | • उपयोग गुण, चेतना लक्षण कहते जीव तत्व । जड़ता लक्षण को कहते, अजीव तत्व | 96 3. चौदहवाँ पुण्य तत्व 4. चौदहवाँ पाप तत्व अशुभ फल देता, पाप तत्व | 5. चौदहवाँ आश्रव तत्व = आत्मा में कर्मों का आना, आश्रव तत्व आश्रव को रोकना, संवर तत्व | 6. चौदहवाँ संवर तत्व = 8. चौदहवाँ बंध तत्व 7. चौदहवाँ निर्जरा तत्व = अंशतः कर्म क्षय, निर्जरा तत्व । 9. चौदहवाँ मोक्ष तत्व = • शुभ फल देता, पुण्य तत्व | = 21) इक्कीसवाँ बोल 2 राशि 22) बाईसवाँ बोल 15) पन्द्रहवाँ बोल 8 आत्मा = 12 व्रत 23) तेइसवाँ बोल = आत्मा कर्म एकमेक को कहते, बंध तत्व | • सम्पूर्ण कर्म क्षय, मोक्ष तत्व । 16) सोलवाँ बोल 24 दण्डक दण्डक । 17) सतरवाँ बोल शुभ अशुभ परिणाम को 6 लेश्या कहते, लेश्या । 18) अठारवाँ बोल 3 दृष्टि = अन्तःकरण की रूचि को कहते, दृष्टि | = = मन की एकाग्रता को कहते, ध्यान | 5 महाव्रत 24) चौबीसवाँ बोल 49 भंग 25) पच्चीसवाँ बोल 5 चारित्र 19) उन्नीसवाँ बोल ध्यान । 20 ) बीसवाँ बोल 6 द्रव्य = गुण-पर्याय रहते कहते द्रव्य | ज्ञानादि में रमे, वह आत्मा । कर्मों के दण्ड भोगे, = = • समूह ढेर को कहते, राशि । अंशतः पाप त्याग को कहते, व्रत । = पूर्ण पाप त्याग, कहते, महाव्रत । को = = पच्चक्खान लेने के विकल्प को कहते, भंग । • आत्म शुद्धिकरण करता, चारित्र | =
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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