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घोड़े, हाथी : आगति 267, गति 8 की | 89) कौन से जीव जो केवली बनेंगे, तीर्थंकर (चार नरक तक ही।
नहीं ?
न. ति. म. देव. 82) ऐसे महापुरुष की गतागत जो, चक्रवर्ती बनकर
केवली 108 = 4 8 15 81 के तीर्थंकर बने (शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ,
तीर्थंकर 38 = 300 35 अरनाथ) 36/मोक्ष (दूसरी और तीसरी
70 = 1+ +8 +15 +46 = 70 नारकी को छोड़कर)
4थी नारकी, 5 संज्ञी तिर्यंच पर्याप्त वासुदेव का जीव 5 अनुत्तर विमान से नहीं
(पंचेन्द्रिय) + 3 बादर पृथ्वी, पानी, आता है।
वनस्पति, 15 कर्म भूमिज मनुष्य के पर्याप्त, साधु कौन नहीं बन सकता 371-275=96 15 भवनपति, 26 वाणव्यन्तर, 10 (छठी व सातवीं नारकी के जीव, 86 युगलियाँ ज्योतिषि=701 तेउ, वायु के 8)
90) गुणस्थान की गता-गत 85) हममें 23 पदवियों में से 2 पदवियाँ हैं -
पहला गुणस्थान : मिथ्यादृष्टि की सम्यग्दृष्टि और श्रावक)।
371/553 महावीर स्वामी में 4 पदवियों में से 2 पदवियाँ
दूसरा गुणस्थान : सास्वादन 194 गत थी - सम्यग् दृष्टि, साधु । शान्तिनाथजी
तीसरा गुणस्थान : मिश्र 363/अमर में ? तीर्थंकर में जघन्य 4 और उत्कृष्ट - 6
चौथा गुणस्थान : 246 गत 87) मनः पर्यय की गतागत साधु के समान : पाँचवा गुणस्थान : श्रावक के समान 275/70
276/42 88) कौन से जीव ऐसे हैं ? जो दीक्षा लेने पर छठा गुणस्थान : साधु के समान 275/70 मोक्ष नही जाएंगे?
सातवां गुणस्थान : 275/70 दीक्षा लेने वाले 275, मोक्ष जाने वाले 108
आठवां गणस्थान : क्षपक श्रेणी - 108) न. ति. म. देव.
मोक्ष। उपशम श्रेणी 275/10 275 =5 + 40+ 131 +99
हमारी 276/42 108 =4 + 8 +15 +8
अलेशी 108/मोक्ष 167 =1+ 32 +116 +18
कृष्णपक्षी 371-5 अनुत्तर विमान = 366/ 5 वी नरक, 5 असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, 3 563 विकलेन्द्रिय के पर्याप्त, अपर्याप्त 16+5 संज्ञी शुक्लपक्षी 371/563 तिर्यं पंचे के अप 21+ 6 पृथ्वी, अप के
भवि की 371/563 सूक्ष्म, प. अप+5 वनस्पति काय के, साधारण
अभवि की 371-5 अनु वि = 366/553 सूक्ष्म के प. अप, प्रत्येक का अप. = 32+101 समु मनुष्य+18 मिथ्यात्वी देव..
91) सर्वार्थ सिद्ध से आया हुआ जीव निश्चय एक
भवावतारी ही होता है।