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________________ 18) | तीर्थंकर व सामान्य केवली विवेचना ) | 12) तीर्थंकर एक दूसरे से नहीं मिलते, जब कि सामान्य केवली साथ भी रहते हैं । केवली तीर्थंकर भगवान और सामान्य केवली में क्या अन्तर परिषद भी होती है। 13) तीर्थंकर के अशोक वृक्ष आदि आठ तीर्थंकर भगवान और सामान्य केवली, दोनों ज्ञान महाप्रतिहार्य होते हैं, जब की सामान्य केवली की अपेक्षा समान हैं, किन्तु उनमें बहुत से अन्तर के नहीं। है, वे इस प्रकार है। 14) तीर्थंकर वर्षीदान देते है, सामान्य केवली 1) तीर्थंकर पद नाम कर्म के उदय से मिलता नहीं । है, केवली पद नही। तीर्थंकर की आगति 38 स्थान से होती है, तीर्थंकर में अतिशय होते हैं, सामान्य केवली केवली के 108 स्थानों से होती है। के नहीं। 16) तीर्थंकर को जन्म से ही अवधिज्ञान सहित तीर्थंकर के गणधर होते हैं, सामान्य केवली तीन ज्ञान होते है, केवली के भजना । के नहीं। तीर्थंकर को दीक्षा लेते ही मनः पर्यय ज्ञान तीर्थंकर ज.20 और उ.170 होते हैं, जबकी होता है, सामान्य केवली या गणधर के भजना केवली ज. 2 करोड़ और उ9 करोड़ होते कहना । तीर्थंकर की प्रथम देशना में गणधर बनते तीर्थंकर पद प्रथम अरिहन्त पद में लिया है, सामान्य केवली की भजना। गया है, जब की सामान्य केवली को प्रथम 19) तीर्थंकर के शरीर की अवगाहना ज.7 हाथ, व पांचवे पद में मानने की परम्परा है। उ. 500 धनुष, तथा सामान्य केवली की तीर्थंकर की माता को 14 स्वप्न आते हैं। अवगाहना ज.2 हाथ एवं उ. 500 धनुष परन्तु केवली के भजना। होती है। तीर्थंकर की ज. 72 वर्ष की उम्र व उ. 84 20) एकेन्द्रिय जीव (पृथ्वी, पानी, वनस्पति) लाख पूर्व की होती है | केवली की ज.9 मरकर केवली (मनुष्य) बन सकते हैं, परन्तु वर्ष व उ. एक करोड़ पूर्व की । तीर्थंकर नहीं बन सकते है। देवों द्वारा तीर्थंकरों का जन्मोत्सव किया 1,2,3 नरक से निकला हुआ जीव तीर्थंकर जाता है, जब की सामान्य केवली का नहीं । और 1,2,3,4, नरक से निकला हुआ जीव सामान्य केवली बन सकता है । तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना करते हैं, सामान्य केवली नही। 22) तीर्थंकर का शरीर समचौरस संस्थान एवं शुभ श्रेष्ठ पुद्गलों से ही बना होता है, 10) तीर्थंकर की सेवा में प्रायःदेव आते रहते हैं, जबकि सामान्य केवली में 6 संस्थान पावे | केवली के भजना। 23) तीर्थंकर भगवान केवलज्ञान होने के बाद ही 11) तीर्थंकर, केवली समुद्घात नहीं करते है, उपदेश देते हैं, जबकि सामान्य केवली जब कि केवली करते भी है, और नहीं भी। उपदेश देते भी है, और नहीं भी । '०
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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