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________________ चौथी तक, सर्प पाँचवी तक, मछली छः | कौनसे ऐसे जीव हैं, जो तिर्यंच - पंचेन्द्रिय तक, मच्छ 7 वीं तक । नहीं बन सकते है? 67) देवता मरकर देवता नहीं बन सकता क्योंकि मरनेवाले : 371 जो तिर्यंच बन सकते हैं । देव बनने के जो कारण 4 होते हैं, वे वहाँ यानि तिर्यंच पंचे की आगत 267 तो, 371नहीं होते हैं। देवता, श्रावक नहीं बन सकता 2673104, ऐसे जीव हैं जो तिर्यंच पंचेन्द्रिय नहीं बन सकते हैं। 68) 56 अन्तरद्वीप के मानव युगलिक भवनपति, 104318 प्रकार के देव, (9 वें देवलोक से वाणव्यन्तर से आगे नहीं जा सकते है । ऊपर अनु. विमान तक के) और 86 69) देवियाँ सिर्फ दूसरे देवलोक तक ही होती युगलिया। है, उसके आगे सिर्फ देव । 78) संज्ञी मनुष्य नही बन सकते है । 70) तिर्यंच मरकर ज्यादा से ज्यादा 8 वें देवलोक तक ही जा सकते हैं। उसके आगे मनुष्य ही मरने वाले : 371, संज्ञी मनुष्य की आगतः 276, तो 371- 276=95 जीव संज्ञी मनुष्य जा सकते है। नहीं बन सकते हैं 95=86 युगलिया, सूक्ष्म (पृथ्वी पानी, वनस्पति) की आगत तेउकाय, वायुकाय के सूक्ष्म बादर, पर्याप्त 179 क्योंकि देवता सूक्ष्म में नहीं जाते हैं | अपर्याप्त 86+8=94 +1 7 वीं नारकी के 72) तेउकाय, वायुकाय में सूक्ष्म बादर दोनों की जीव = 95 आगत समान है। 79) 23 पदवियाँ - 7 एकेन्द्रिय रत्न, 7 पंचेन्द्रिय 73) उपशम श्रेणी वाले जीव 11 वें गुणस्थान रत्न, 9 मोटी पदवियाँ तक जाकर भी मिथ्यात्व में पड़ सकते हैं। 9 मोटी पदवियाँ : तीर्थंकर, केवली, चक्रवर्ती, वे उस भव में मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते बलदेव, वासुदेव, मांडलिक राजा, हैं। इनकी आगत 275 साधु के समान और गतिः 5 अनुत्तर विमान के पर्याप्त और सम्यकदृष्टि, साधु और श्रावक । अपर्याप्त । 81) पंचेन्द्रिय रत्न - सेनापति, गाथापति, बढ़ई, 74) असन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय चारों गति में जा सकता पुरोहित, श्रीदेवी, घोड़ा, हाथी । इनकी है । ऊपर जावे तो भवनपति वाणव्यन्तर, गतागतः पहले चारों की अगति 271/14 नीचे जावे तो पहली नारकी, युगलिया में गति नारकी । 271 - (276 में से 5 अनुत्तर जावे तो 56 अन्तरद्वीप । विमान के कम । एक बार जो जीव अनुत्तर विमान में जावे तो 22 दण्डक के ताले लग 75) असन्नी नपुंसक ही होते हैं, सन्नी तीनों वेद जाते हैं। पा सकते हैं। सिर्फ सन्नी मनुष्य व वैमानिक को छोड़कर) 76) किसी भी जीव की आगति भी 371 से ज्यादा नहीं है, क्योंकि इतने ही जीव मरते हैं बाकि श्रीदेवी = अगति 271/12 गति (7वी नरक 192 जीव अमर हैं। में नहीं जाती)। 80)
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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