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25) देवों में पुण्यशालियों का क्रम : वैमानिक, ज्योतिषी, वाणव्यन्तर, भवनपतिदेव । (निम्नतर क्रमशः समजना)
26) करोड़ पूर्व से अधिक उम्र वाला मनुष्य तथा तिर्यंच युगलिया मरकर देवगति में ही जाते है । 27 ) अन्तर्मुहूर्त से करोड़ पूर्व तक की उम्र वाला तिर्यंच चारों गति में जा सकता है ।
28) नारकी, देवता और युगलिक में पर्याप्त जीव ही आ सकता है, और वे भी पर्याप्त अवस्था में ही मरते हैं, और ये मरकर जहाँ जाते है, वहाँ भी पर्याप्त अवस्था में ही मरते हैं । 29) युगलिक की उम्र जितनी है, उससे अधिक ( एक समय भी ) प्राप्त नहीं कर सकता है, पर कम प्राप्त कर सकता है । युगलिक मर कर देव ही बनते हैं ।
30) तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव ये चार पदवी वाले नरक और देवता से ही आते हैं। (मनुष्य से नहीं आते हैं)
31) चक्रवर्ती संयम लेवे तो देव या मोक्ष चक्रवर्ती और वासुदेव मरकर नियमा नरक में ही जाते हैं और वहाँ पर नियमा उत्कृष्ट स्थिति ही पाते हैं (जघन्य और मध्यम नही)
32) नियाणा किया हुआ जीव अनुत्तर विमान में जन्म नहीं लेता । आराधक जीव ही जन्म लेता है । वह भी सिर्फ अप्रमत साधु । श्रावक अनुत्तर विमान मे भी नहीं जाता। यह नियम है ।
33)
5 अनुत्तर विमान को छोड़कर शेष सभी भेदों में अभवी जीव भी जन्म लेता है । 34 ) एक बार जिस जीव ने पहला गुणस्थान छोड़ दिया वह भवी ही होता है, और देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल में नियमा मोक्ष जाएगा ही, तो इससे सिद्ध होता है कि 5
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अनुत्तर विमान में जो जीव है वह नियमा भवी है ।
35) देवता जन्म से मृत्यु तक (सदा) युवा दिखते है । (32 वर्ष के नौजवान समान)
36)
9 वे से 12 वे देवलोक, 9 ग्रेवैयक और 5 अनु. विमान के जीव की गति और आगति दोनों 15 कर्म भूमिज मनुष्य ही होते है । 37 ) सर्वार्थ सिद्ध वाले नियमा एक भवावतारी होते हैं, शेष चार अनुत्तर विमान वाले जघन्य 1 भव उत्कृष्ट, 13 वें भव में नियमा मोक्ष जाएँगे ।
38) देव में 15 परमाधामी और 3 किल्विषी नियमा मिथ्या दृष्टि वाले होते हैं । (हल्के देव) । 39) देव में 5 अनुत्तर विमान वाले देव नियमा
सम्यग्दृष्टि ही होते हैं । (उच्च कोटि के पुण्यवान) शेष 76 देवों में तीनों दृष्टि ।
40) चार पदवियों का बन्ध नियमा सम्यक्त्व में ही होता है। (तीर्थंकर, वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती) (63 महापुरुष नियमा भवी ही होते है ।)
41) (संयम न लेने पर) चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव की गति नियमा समान होती है । ये एक गति, नारकी में ही जाते है ।
42) बलदेव नियमा साधु बनता है। इसलिए बलदेव का पद अमर है। गति साधु के समान। 43) ग्रेवैयक की ये विशेषता है कि द्रव्य या भाव साधुपना वाला ही ग्रेवैयक में जा सकता है ।
द्रव्य साधुपना : केवल वस्त्रों से पहना हुआ साधु, (बाह्य वेश) परन्तु कषाय मन्द ।
भावसाधुपना : आत्मा के आंतरिक परिणामों में संयम के भाव हो अर्थात छठा गुणस्थान या इसके आगे का गुणस्थान (6 से लेकर