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________________ 18) 6) आत्मा है, परमात्मा है, परन्तु शरीर धारी | 15) अव्रती, देशव्रती, प्रमत्त संयती, अप्रमत्त हैं, कौन ? संयती, व सिद्धों में सभी में क्या पावें ? उ. अरिहन्त उ. क्षायिक समकित 7) पाँच पदो में से वह कौनसा पद है, जहाँ | 16) जिन कितने प्रकार के होते है ? उत्कृष्ट निर्जरा होती है ? उ. तीनः अवधि जिन, मनःपर्यय जिन, उ.अरिहन्त (14 वे गुणस्थान के अंत में) केवली जिन अरिहन्त भगवान किस ध्यान में बनते हैं? 17) स्नातक आत्मा कब बनती है ? उ. परम शुक्ल ध्यान में। उ. 13 वें गुणस्थान के प्रारम्भ में, जब केवल ज्ञान मनुष्य को होता है, तब इन्द्र को । आत्मा सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन जाती है। कैसे पता लगता है ? अरिहन्त के दूसरे नाम लिखिए ? उ. केवली परम शुक्ल लेश्या के पुद्गलों को उ. जिन, वीतरागी, केवली, सर्वज्ञ, छोड़ते है, जिसे इन्द्र अवधिज्ञान में देखते सर्वदर्शी। 19) चार प्रकार के मनुष्यों में अरिहन्त कौन मनुष्य 10) पाँच पद में परम शुक्ल लेश्या कहाँ पाती बनता है ? उ. 15 कर्म भूमिज मनुष्य उ.अरिहन्त में (13 वे, गुणस्थान में) 20) अरिहन्तकीआयु बताएँ ? . 11) तिन्नाणं -तारयाणं किसे कहा गया है ? उ. केवली अरिहन्त की ज. 9 वर्ष उत्कृष्ट (गर्भ काल सहित) एक करोड़ पूर्व वर्ष, उ. अरिहन्त को तीर्थंकर अरिहन्त ज.72 वर्ष। उ. 84 लाख 12) अरिहन्त के 12 गुणों में से अध्यात्म एवं पूर्व वर्ष । भौतिक गुणों का बँटवारा करें ? 21) अरिहन्त भगवान की अवगाहना बताएं ? उ.चार अध्यात्म : अनंत ज्ञान, अनंत उ. तीर्थंकर अरिहन्त ज. 7 हाथ उ. 500 दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत बलवीर्य धनुष तथा केवली की ज. 2 हाथ उ. 500 आठ भौतिक गुणः दिव्य ध्वनि, भामण्डल, धनुष स्फटिक-सिंहासन, अशोक वृक्ष, कुसुम वृष्टि, 22) अरिहन्त भगवान में गुणस्थान कितने देवदुन्दुभि, छत्र धरावें, चंवर बिंजावे | पावे ? 13) आठ समय की समुद्घात का नाम क्या उ. दो. 13 वाँ, 14 वाँ । है ? वर्तमान में ऋषभादिक 24 अरिहन्त हैं या उ. केवली समुद्घात नहीं ? कहाँ पर विराजमान है ? 14) 13 वें गुणस्थान में आत्मा वीतरागी बनती नहीं ! सिद्ध लोक में विराजमान हैं। या उससे पहले बनती है ? 24) अरिहन्त की अवगाहना व ज्ञान में परस्पर उ. उससे पहले बनती है।(11वां गुण, 12वां फर्क होता है क्या ? गुण, 13वां गुण एवं 14वें गुण में वीतरागी उ. अवगाहना में फर्क हो सकता है, ज्ञान रहते हैं) में नहीं।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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