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25) चार घाती कर्म के नाम बताइए ?
उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय अंतराय
26) अरिहन्त अघाती कर्म रहित होते हैं या घाती कर्म रहित ?
28)
उ. घाती कर्म रहित होते है । आत्मा के गुणों का, घात करे वो घाती ।
27) अनन्त ज्ञान (केवल ज्ञान) किस कर्म के क्षय होने पर होता है ?
उ. ज्ञानावरणीय (ज्ञान + आवरणीय) के क्षय होने पर ।
अनन्त दर्शन (केवल दर्शन) किस कर्म के क्षय होने पर होता है ?
उ. दर्शनावरणीय (दर्शन+आवरणीय) के क्षय होने पर ।
29) क्षायिक समकिती व वीतरागी कब होते है ? उ. मोहनीय कर्म के क्षय होने पर 30) अनन्त शक्ति (आत्मिक) कब होती है ? उ. अन्तराय कर्म के क्षय होने पर
31) वीतरागी का अर्थ क्या है ?
उ. राग और द्वेष का पूर्णतः क्षय । 32) क्षायिक समकित का अर्थ क्या है ?
उ. ऐसी धर्म श्रद्धा जो भविष्य में कभी भी नही गिरती है । मनुष्य गति में ही उत्पन्न होती है । चारों गति में मिल सकती है । 33) क्षायिक चारित्र का अर्थ बताइए ?
उ. जिस चारित्र (संयम) में, साधु पणा में कषाय का क्षय हो चुका हो ।
34 ) अरिहन्त में कितने रत्न पाते हैं ?
उ. तीन : सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र |
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35) सम्यक्ज्ञान की परिभाषा बताइए ?
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37 ) सम्यक् दर्शन का क्या अर्थ है ?
उ. धर्म श्रद्धा सहित नव-तत्व आदि जो जिन - वाणी का ज्ञान है, वो सम्यक्ज्ञान कहलाता है ।
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जिनवाणी किसे कहते हैं ?
उ. जिन (तीर्थंकर) भगवान की फरमायी हुई वाणी को जिन वाणी कहते हैं ।
41)
उ. धर्म श्रद्धा (श्रद्धा-विश्वास) सुदेव, सुगुरु एवं सुधर्म पर श्रद्धा।
धर्म का अर्थ क्या है ?
39 ) वस्तु का अर्थ क्या है ?
उ. वत्थु सहावो धम्मो (वस्तु का स्वभाव ही धर्म है)
उ. जीव, व अजीव सभी पदार्थों को वस्तु कहते है ।
पदार्थ के कितने प्रकार हैं ?
उ. जीव, अजीव, पुण्य आदि नव पदार्थ (तत्व) (पद+अर्थ) ।
भाव के कितने प्रकार?
उ० भाव स्वभाव और विभाव स्वभाव : जीव और अजीव अजीव : धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय व काल । ये दो केवल सिद्ध में ही है (क्षायिक और परिणामिक भाव) धर्म का अर्थ है, स्वभाव और हमे स्वभाव पर विश्वास करना चाहिए । मोहनीय कर्म के उदय से हम स्वभाव से विभाव मे आते हैं ।
विभाव जीव : क्षायोपशमिक, उपशम, उदयभाव ये सब कर्म जन्य भाव है, कर्म ही उनका जनक है। भाव का अर्थ है, भावार्थ इति भावः जिसमें कुछ होता है ।