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________________ 29) अर्थ आगम को सूत्र आगम रुप में कौन । 40) ज्ञान का फल क्या है ? गूंथते है ? उ.विज्ञान उ. गणधर भगवान तथा 10 से 14 41) विज्ञान का फल क्या है ? पूर्वधर तक के ज्ञानी । उ.प्रत्याख्यान ज्ञान के अतिचार कितने है ? प्रत्याख्यान का फल क्या है ? . उ. सम्यक ज्ञान के 14 अतिचार है । उ."संयम" अच्चक्खरं का अर्थ क्या है ? संयम का फल क्या है ? उ. अधिक अक्षर लगाना, ये चौथा अतिचार उ. अनाश्रव अनाव का फल क्या है ? क्या नमो अरिहंताण के आगे “ॐ” लगाने उ. तपस्या से दोष नहीं लगता ? उ.दोष लगता है | ज्ञान का अतिचार है, तपस्या का फल क्या है ? शाश्वत नवकार के आगे-पीछे शब्द जोड़न उ.निर्जरा उचित नहीं । अनंत-ज्ञानी की आशातना 46) निर्जरा का फल क्या है? उ. अकिरिया 33) ज्ञान प्राप्ति का क्या उपाय है ? 47) अकिरिया का फल क्या है ? (भगवती सूत्र उ. भगवती सूत्र के अनुसार 'सवणे' (श्रवण) के दो, उद्देश पांच) से ज्ञान शुरू होता है । सन्त महात्माओं की उ. मोक्ष सेवा से, सुनना मिलता है । सुनने का फल प्रतिक्रमण का शास्त्रीय नाम क्या है ? ज्ञान होना बताया है। उ. आवश्यक सूत्र (आगम) मनन-चिन्तन, स्मृति और इन्द्रियों के निमित्त 49) आवश्यक सूत्र के कितने अध्ययन है ? से होने वाले बोध को क्या कहते हैं ? उ. कुल छः है 1) सामायिक 2) चउवीसत्थव) उ. “मतिज्ञान या आभिनिबोध ज्ञान" 3) वंदना 4) प्रतिक्रमण 5) काउस्सग 6) 35) सुनना और बोलना कौनसा ज्ञान ? प्रत्याख्यान । उ. "श्रुत ज्ञान" 50) 24 तीर्थंकरो की स्तुति किस आवश्यक में 36) रूपी पदार्थों (वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, सहित) के मर्यादित ज्ञान (भूत, भविष्य, और वर्तमान उ. दूसरा-चउवीसत्थव कालिक) को क्या कहते हैं ? समभाव की साधना का नाम क्या है? उ.अवधि ज्ञान उ.सामायिक संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीवों के मन को जानने 52) सद्गुरुओं को वन्दन नमस्कार किस आवश्यक वाले ज्ञान को क्या कहते हैं ? में करते हैं ? उ.मन : पर्यव ज्ञान उ.तीसरा-वन्दना 38) तीनों काल, लोक-अलोक को जानने वाले 53) दोषों की आलोचना किस आवश्यक में है? ज्ञान को क्या कहते हैं ? उ.प्रतिक्रमण नामक चौथे आवश्यक में है। उ. केवल-ज्ञान 54) प्रायश्चित रुप 'काया के प्रति ममत्व त्याग' 39) सदज्ञान-सुनने का क्या लाभ है ? कौनसा आवश्यक है ? सम्यक् ज्ञान होता है। उ. कायोत्सर्ग नाम का पाँचवा आवश्यक है। 34) 51) 27)
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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