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________________ आगमिक-प्रश्नोत्तर ) धर्म श्रद्धा का दूसरा नाम क्या है ? उ. सम्यक्त्व - सम्यग्दर्शन जैन धर्म में परमार्थ किसे माना गया है? उ.“नव तत्व का ज्ञान". जैन धर्म का नाम आगम में क्या है ? उ. जिण धम्मो (केवली पण्णत्तो धम्मो) तीर्थंकरो के धर्म को क्या कहते है ? उ.जिन धर्म सर्व प्रथम क्या सीखना चाहिए? उ. “नव - तत्व” अरिहंतो महदेवो... में क्या ग्रहण किया जाता उ. सम्यक्त्व अरिहन्त और सिद्ध का शामिल नाम क्या है? उ. वीतराग देव जिन कार्यों से धर्म में श्रद्धा उत्पन्न हो, और धर्म श्रद्धा सुरक्षित रहे, उसे क्या कहते हैं ? उ श्रद्धान ! ये चार होते हैं । आत्मा के लिए परमार्थ क्या है ? उ. मोक्ष नव तत्व का नाम किस किस शास्त्र में आता है? उ. ठाणांग सूत्र, व उत्तराध्ययन का 28 वाँ अध्ययन । चार श्रद्धान में धारण करने योग्य कितने ? उ. दो - पहला और दूसरा चार श्रद्धान का शास्त्रों में कहां वर्णन है ? उ. आवश्यक सूत्र में (अरिहंतो महदेवो) । चार श्रद्धान में से छोड़ने योग्य कितने ? उ.दो - तीसरा-चौथा वस्तु का वास्तविक स्वरुप क्या है ? उ.तत्व हिंसा आदि पाप से लिप्त को कौनसा तीर्थ कहते है ? उ. कुतीर्थ 16) 67 बोल का अधिकार कहाँ आता है ? उ.प्रवचन-सारोद्धार ग्रंथ । परमार्थ के जानने वालों की क्या करने से सम्यक्त्व दृढ़ होती है ? उ."सेवा" 18) जो जैसा है उसे वैसा मानना (दृढ़ता पूर्वक) को क्या कहते है? उ. “सम्यक्त्व" 19) बाहरी गुणों से यह सम्यक्त्वी है, ऐसा आभास होता है, उसे क्या कहते है ? उ. "लिंग" 20) धर्म सुनने में अनुराग का चिह्न व हर्षित होना, ये किसके बाहरी चिह्न है ? उ. “सम्यक्त्व के" तीर्थंकरो के धर्म को क्या माना है ? ' उ. विनय मूल धम्मो 22) विनय को क्या माना है ? उ. आठवाँ तप (आभ्यन्तर) व पुण्य नववां । 23) वीतराग देव कौन-कौन से है ? उ. “अरिहंत व सिद्ध" आठ कर्मों को नष्ट करने वाले प्रधान गुण को क्या कहा है? उ. विनय 25) हिन्दू धर्म के अनुसार वेद ईश्वर की वाणी है, महात्मा बुद्ध की वाणी का संकलन पिटक, उसी तरह तीर्थंकर की वाणी को क्या कहा गया है ? उ. आगम (सुत्तागमे, अत्थागमे) 26) मूल पाठ को (आगम के) क्या कहते है ? उ.सुत्तागमे 27) तीर्थंकर भगवान क्या फरमाते है ? उ.आगम का अर्थ सूत्र आगम के अर्थ को क्या कहते हैं ? उ. अर्थ-आगम
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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