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(१४) भात-पानी--भोजन-पानी का वजन निश्चित करना।
पृथ्वीकाय-मिट्टी, नमक, चॉक आदि काम में लेने का परिमारण करना।
अपकाय-पानी पीने तथा काम में लेने के वजन का परिमारण करना।
तेउकाय-चूल्हा, दीपक आदि का परिमारण करना। वाउकाय-पंखा, झूले वगैरह का परिमाण करना ।
वनस्पति–उपयोग में आने वाली सब्जी का नाम से अथवा तौल से परिमारण करना।
असि-सुई, कैंची, सरोता आदि को काम में लेने की संख्या का परिमाण करना।
मसी-खड़िया, कलम आदि को काम में लेने की संख्या निश्चित करना।
कृषि-हल, कुल्हाड़ी, फावड़ा, हलवाणी आदि को काम में लेने की संख्या का परिमारण करना ।
जगत् में खाने की, पीने की, प्रोढ़ने की और काम में आने को अनेक चोजें हैं। इन समस्त वस्तुओं का उपयोग हम एक साथ नहीं करते और कर भी नहीं सकते, फिर भी पच्चक्खाण (प्रतिज्ञा) के अभाव में उन वस्तुओं पर अपनी इच्छा लगी रहती है। इसलिये उन इच्छाओं द्वारा हमारी आत्मा उन
श्रावकवत दर्पण-३२