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________________ बत्तीस अनन्तकाय-(१) सूरण, (२) लहसन, (३) हल्दो, (४) आलू, (५) कच्चा नरक चर, (६) सतावरी, (७) अदरख, (८) गुवार पाठा, (९) थोर, (१०) गिलोय, (११) गठा प्याज, (१२) गाजर, (१३) मूली, (१४) कोमल फलफूल, (१५) गिरिकणिका, (१६) कचालू, (१७) पद वहेड़ा, (१८) थेकनी भाजी, (१६) कच्ची इमली, (२०) भेगी, (२१) हरा मेथा, (२२) अमृत बेल, (२३) मुलानाकन्द, (२४) भूमि फोड़ा, (२५) नए अंकुर, (२६) बथुए की भाजी, (२७) सूकर जाति के बाल, (२८) पालक की भाजी, (२६) पत्र, (३०) रतालु, (३१) पीडालु, (३२) वंश कारेला । ___ऊपर बताये गये बत्तीस अनन्तकाय का सर्व पाप-भीरु श्रावक-श्राविकाओं को त्याग करना जरूरी है। बल्कि ये सभी वस्तुएँ नित्य उपयोग में नहीं आती तथा उनका दर्शन होना भी दुर्लभ है, कितनी ही तो ऐसी है कि सारी जिन्दगी तक खाने में भी नहीं आतीं। फिर भी इन वस्तुओं का प्रतिज्ञापूर्वक और इरादापूर्वक त्याग नहीं किया जाता तब तक उन वस्तुसम्बन्धी नाहक का पापबंध हुआ करता है। अज्ञात फल --अज्ञात फल या जिसका नाम या स्वरूप स्वयं या दूसरे नहीं जानते हों उसे नहीं खाना चाहिये। क्योंकि ऐसा करने से कदाचित् निषेध किये अथवा विषवृक्ष के फल खाने में प्रवृत्ति हो जाय, इसलिए विद्वानों को अज्ञात फल नहीं खाना चाहिये। रात्रि-भोजन से होने वाले दोष-अनेक पापस्थानों में रात्रिभोजन भी एक पाप का ही स्थानक है। सूर्यास्त बाद अनेक श्रावकवत दर्पण-२५
SR No.002324
Book TitleShravakvrat Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherSwadhyaya Sangh
Publication Year1988
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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