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________________ है। इसलिये विवेकी पुरुषों को मक्खन नहीं खाना चाहिये । एक भी जोव को मारने में पाप है तो जन्तुओं के समुदाय से भरपूर इस मक्खन का कौन बुद्धिमान् मनुष्य भक्षण करेगा ? अर्थात् दयालु मनुष्य तो कदापि भक्षण नहीं करेगा। शहद खाने के दोष-अनेक जन्तुओं के समूह का नाश होने से पैदा हुअा और जुगुप्सनीय लार वाले ऐसे शहद का भक्षण कौन करे? एक-एक पुष्प में से रस पीकर मक्खियाँ दूसरे स्थान पर रस वमन करतो हैं, उससे पैदा हुआ वह रस शहद कहलाता है। ऐसा उच्छिष्ट (जठा) शहद धर्मात्मा आदमी नहीं खाते हैं। कालकूट जहर का कण भी खाया हो तो वह प्राण के नाश के लिये होता है। कितने ही अज्ञानी जीव कहते हैं कि शहद में भी मिठास है। परन्तु उसके रसास्वादन करने से बहत समय तक नरक की वेदना भोगनी पड़े, उसे तात्त्विक मिठास कैसे कह सकते हैं ? जिसका परिणाम दुःखदायी हो, उसमें मिठास हो तो भी उसे मिठास नहीं कहा जाता, इसलिये विवेकी पुरुषों को शहद का त्याग करना चाहिये । ऊपर बताये गये मदिरा, मांस, मक्खन और शहद ये चार अभक्ष्य महा विगई गिने जाते हैं। इनमें घोर हिसा रही हुई है। इसलिये धर्मप्रेमी, दयालु और अपने कल्याण के इच्छुक मनुष्यों को इनका शीघ्र त्याग कर देना चाहिये। ___ पाँच प्रकार के बड़, पोपल आदि प्रमुख फल-बड़, पीपल, पिलं खरण, कठुम्बर और गूलर के फल में बहुत से त्रस जन्तु भरे होते हैं, इसलिये इन पाँच वृक्षों के फलों को कदापि नहीं खाना । दूसरा भोजन न मिला हो और शरीर क्षुधा से दुर्बल हो गया हो तब भो पुण्यवंत प्राणी बड़ आदि वृक्षों के फल नहीं खाते हैं। श्रावकव्रत दर्पण-२४
SR No.002324
Book TitleShravakvrat Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherSwadhyaya Sangh
Publication Year1988
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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