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________________ पलड़ा ही भारी रहेगा। महान् पापियों के भी उद्धार का उपाय है, परन्तु जब तक मनुष्य असत्य नहीं छोड़ता, तब तक उसके उद्धार का कोई उपाय नहीं है। सत्यवादी की श्रेष्ठता सत्य, ज्ञान और चारित्र का मूल है। जो सत्य बोलते हैं, उनके चरण-रज से पृथ्वी पवित्र होती है तथा सत्य व्रत रूप महाधन वाले जो जीव असत्य नहीं बोलते , उनको दुःख देने के लिये भूत-प्रेत या सर्प वगैरह भी समर्थ नहीं हो सकते । देव भी उनका पक्षपात करते हैं। राजा उनकी आज्ञा मानते हैं और अग्नि आदि भी उनके सत्य वचन के प्रभाव से शांत हो जाती है । यह सब सत्य का ही प्रभाव है । (३) अचौर्य (तीसरा अणुव्रत) ___ मालिक की आज्ञा के सिवाय दूसरे की वस्तु लेने रूप चोरी का त्याग करना यह गृहस्थ का अस्तेय व्रत नाम का तीसरा अणुव्रत है। चोरी के फलस्वरूप दुर्भाग्य, गुलामी, दासत्व, अंगच्छेद और दरिद्रता प्रादि प्राप्त होती है। ऐसा समझकर किसी का पड़ा हुआ, खोया हुआ, न्यास रखा हुआ, भूला हा और गाड़ा हया दूसरे का धन मालिक के दिये बिना कभी भी नहीं लेना चाहिये। जो मनुष्य दूसरे के धन की चोरी करता है, उसने उसका धन ही नहीं लटा बल्कि उसके साथ उसका यह लोक, परलोक, धर्म, धैर्य, धृति और मति भी चुराई है। तात्पर्य यह है कि धन लुट जाने की पीड़ा से यह भव बिगड़ता है, धीरता नहीं रहती है, शान्ति में बाधा पड़ती है और बुद्धि गुम हो जाती है। इसलिए धन चुराने वाले ने उसकी इन सब वस्तुओं श्रावकवत दर्पण-१४
SR No.002324
Book TitleShravakvrat Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherSwadhyaya Sangh
Publication Year1988
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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