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अहम् ॥
श्रावकवत दर्पण
(श्रावक के बारह व्रतों का स्वरूप)
'श्राद्ध-दिन-कृत्य' में श्रावक शब्द का अर्थ बतलाते हुए पू. देवेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज फरमाते हैं कि
श्रद्धालुतां श्राति जिनेन्द्रशासने , धनानि पात्रेषु वपत्यनारतम् । करोति पुण्यानि सुसाधु-सेवना
दत्तोपि तं श्रावकमाहुरुत्तमाः॥१॥ 'श्रा' शब्द से भगवान के शासन में श्रद्धा को परिपक्व बनावें। ____'व' शब्द से पात्र में निरन्तर अपने धन को लगाव ।
'क' शब्द से साधु-महात्माओं की सेवा द्वारा पुण्य का उपार्जन करें।
धावक-१ .
श्रावकव्रत दर्पण-१