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के अधरप्रश्नों का ग्रहण कर निकृष्ट फल कहा है। तात्पर्य यह है कि यहाँ सामान्यतः एक ही उत्तर से उत्तर शब्द संयुक्त सभी उत्तरों का ग्रहण किया है। इसी प्रकार अधर प्रश्नों को भी समझना चाहिए।
प्रश्नशास्त्र के अन्य ग्रन्थों में उत्तर और अधर प्रश्नों के भेद-प्रभेद कर विभिन्न प्रकार से फलों का निरूपण किया गया है। तथा गमनागमन, हानि-लाभ, जय-पराजय, सफलता-असफलता आदि प्रश्नों के उत्तरों में उत्तर स्वर संयुक्त प्रश्नों को श्रेष्ठ और अधर स्वर संयुक्त प्रश्नों को निकृष्ट कहा है।
उपसंहार एभिरष्टभिः प्रकारैः प्रश्नाक्षराणि शोधयित्वा पुनरुत्तराधरविभागं कुर्यात् ।
अर्थ-इन संयुक्त, असंयुक्त, अभिहत, अनभिहत आदि आठ प्रकार के प्रश्नों को शोधकर उत्तर, अधर और अधरोत्तरादि का विभाग कर प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए। . गाथा
अहरोत्तर वग्गोत्तर वग्गेण य संयुतं अहरं।
जाणइ पण्णायंसो जाणइ ते हावणं सयलं ।। अर्थ-अधरोत्तर, वर्गोत्तर और वर्ग संयुक्त अधर इन भंगों के द्वारा जो प्रश्न को जानता है, वह सभी पदार्थों को जानता है अर्थात् उपर्युक्त तीनों भंगों द्वारा संसार के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है।
उत्तर के नौ भेद और उनके लक्षण - उत्तरा नवविधाः२-उत्तरोत्तरः, उत्तराधरः, अधरोत्तरः, अधराधरः, वर्गोत्तरः, अक्षरोत्तरः, स्वरोत्तरः, गुणोत्तरः, आदेशोत्तरश्चेति । अकवर्गावुत्तरोत्तरौ। चटवर्गावुत्तराधरौ। तपवर्गावघरोत्तरौ। यशवर्गावधराधरौ। अथ वर्गोत्तरौ प्रथमतृतीयवर्गौ। द्वितीयचतुर्थ वर्गावक्षरोत्तरौ। पंचमवर्गोऽप्युभयपक्षाभ्यामेरितभेदेन वर्गोत्तरौ वर्गाधरौ च ज्ञातव्यौ। क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श सा एतान्येकोनविंशत्यक्षराण्युत्तराणि भवन्ति।
शेषाः ख घ छ झठ ढ थ ध प म र व ष हाश्चतुर्दशाक्षराण्यधराणि भवन्ति। अ इ उ ए ओ अं एतानि षडक्षराणि स्वरोत्तराणि भवन्ति। आ ई ऊ ऐ औ
१. “उत्तरा विषमा वर्गाः समा वर्गाष्टकेऽधराः । स्वेषूत्तरोत्तरौ ज्ञेयौ पूर्ववच्चाधराधरौ।।"-के. प्र. र., पृ. ४। २. के. प्र. र., पृ. ५-६ । चं. प्र. श्लो. १८,२७-३०। ३. वर्गावधरोत्तरौ-क. मू.। ४. इदानीं स्वरोत्तरं वक्ष्यामः-अ इ उ ए ओ अं ६ उत्तराः।-ता. मू.। ५. आ ई उ ऐ औ अः अधराः-ता. मू.।।
८४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि