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जानने के लिए शरीर में रहनेवाली ७२ हजार नाड़ियों का परिज्ञान करना अत्यावश्यक है। इन नाड़ियों के सम्यक् ज्ञान से ही चन्द्र और सूर्य स्वर का पूर्ण परिज्ञान हो सकता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रश्नाक्षरवाले सिद्धान्त का ही निरूपण किया गया है । समस्त वर्णमाला के स्वर और व्यंजनों को पाँच वर्गों में विभक्त किया है। तथा इसी विभाजन पर - से संयुक्त, असंयुक्त, अभिहित, अनभिहित, अभिघातित, आलिंगित, अभिधूमित और दग्धये आठ विशेष संज्ञाएँ निर्धारित की हैं। केरलप्रश्नसंग्रह में उपर्युक्त संज्ञाएँ प्रश्नाक्षरों की न बताकर चर्या - चेष्टा की बताई गई हैं। गर्गमनोरमा, केरलप्रश्नरत्न आदि ग्रन्थों में ये संज्ञाएँ समय-विशेष की बतायी गयी हैं । फलाफल का विवेचन प्रायः समान हैं। केरलीयप्रश्नरत्न में ४५ वर्णों के नौ वर्ग निश्चित किये हैं
अ आ इ ई उ ऊ इन वर्गों की अवर्ग संज्ञा; ए ऐ ओ औ अं अः की ए वर्ग क ख ग घ ङ की कवर्ग; च छ ज झ ञ की चवर्ग; ट ठ ड ढ ण की टवर्ग; त थ द ध न वर्ग; प फ ब भ म की पवर्ग; य र ल व की यवर्ग और श ष स ह की शवर्ग संज्ञा बतायी है। वर्गविभाजन क्रम में अन्तर रहने के कारण संयुक्त, असंयुक्तादि प्रश्न संज्ञाओं में भी अन्तर है ।
पाँचों वर्गों के योग और उनके फल
तथाहि – पञ्चवर्गानपि क्रमेण प्रथमतृतीयवर्गांश्च परस्परं दृष्ट्वा योजयेत्' । प्रथम-तृतीययोः द्वितीयचतुर्थाभ्यां योगः ६, पृथग्भावात् पञ्चमवर्गोऽपि (वर्गस्यापि ) प्रथमतृतीयाभ्यां योगः । यत्र यत्किञ्चित् पृच्छति तत्सर्वमपि लभते । तत्र स्वकाययोगे स्वकीयचिन्ता; परकाययोगे परकीयचिन्ता । स्ववर्गसंयोगे स्वकीयचिन्ता, परवर्गसंयोगे परकीयचिन्ता इत्यर्थः । कण, चण, उणि इत्यादि ।
१. शि. स्व., पृ. ६ ।
२. “प्रथमं च तृतीयं च संयुक्तं पक्षमेव च । द्विचतुर्थमसंयुक्तं क्रमादभिहितं भवेत् ॥” – चं, प्र. श्लो. ३४, प्रश्नाक्षराणां पक्षिरूपविभाजनं तद्विशेषफलं च पंचपक्षीनाम्नः ग्रन्थस्य तृतीयचतुर्थ पृष्ठयोः द्रष्टव्यम् । प्रश्नाक्षराणां नववर्गक्रमेण संयुक्तादिविभागः केरलप्रश्नरत्नग्रन्थस्य सप्तविंशतितमपृष्ठे द्रष्टव्यः । इयं योजनापि तत्र प्रकारान्तरेण दृश्यते ।
३. पंचमवर्ग्योऽपि क. मू. ।
४. वर्गांश्च - क. मू. ।
५. योजनीयाः - क.मू. ।
६. योग:, इति पाठो नास्ति - क. मू. ।
७. प्रथमतृतीयवर्गाभ्यां - क. मू. ।
८. स्वकायसंयोगे - क.मू. ।
६. 'स्ववर्गसंयोगेस्वकीयचिन्ता' - इति पाठो नास्ति - क.मू. ।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६६