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________________ हो तो आकाशतत्त्व चलता है, ऐसा जानना चाहिए। अथवा १६ अंगुल का एक शंकु बनाकर उस पर ४ अंगुल, ८ अंगुल, १२ अंगुल और १६ अंगुल के अन्तर पर रुई या अत्यन्त मन्द वायु से हिल सके, ऐसा कुछ और पदार्थ लगा के उस शंकु को अपने हाथ में लेकर नासिका के दक्षिण या वाम किसी भी छिद्र से श्वास चल रहा हो, उसके समीप लगा करके तत्त्व की परीक्षा करनी चाहिए। यदि आठ अंगुल तक वायु (श्वास) बाहर जाता हो तो पृथ्वी तत्त्व, सोलह अंगुल तक बाहर जाता हो तो जलतत्व, बारह अंगुल तक बाहर जाता हो तो वायुतत्त्व, चार अंगुल तक बाहर जाता हो तो अग्नितत्त्व और चार अंगुल से कम दूरी तक जाता हो अर्थात् केवल बाहर निर्गमन मात्र हो तो आकाशतत्त्व होता है। पृथ्वीतत्त्व के चलने से लाभ, जलतत्त्व के चलने से तत्क्षण लाभ, वायु और अग्नितत्व के चलने से हानि और आकाश तत्व के चलने से फल का अभाव होता है। मतान्तर से पृथ्वी और जलतत्व के चलने से शुभ फल; वायु और आकाशतत्त्व के चलने से अनिष्ट फल एवं शारीरिक कष्ट तथा अग्नितत्त्व के चलने से मिश्रित फल होता है। शरीर के वाम भाग में इड़ा और दक्षिण भाग में पिंगला नाड़ी रहती है। इड़ा में चन्द्रमा स्थित है और पिंगला में सूर्य । नाक के दक्षिण छिद्र से हवा निकलती हो तो सूर्य स्वर और वाम छिद्र से हवा निकलती हो तो चन्द्रस्वर जानना चाहिए। चन्द्रस्वर में राजदर्शन, गृहप्रवेश एवं राज्याभिषेक आदि शुभ कार्यों की सिद्धि और सूर्यस्वर में स्नान, भोजन, युद्ध, मुकद्दमा, वादविवाद आदि कार्यों की सिद्धि होती है। प्रश्न के समय चन्द्रस्वर चलता हो और पृच्छक वाम भाग में खड़ा होकर प्रश्न पूछे, तो निश्चय से कार्यसिद्धि होती है। सूर्यस्वर चलता हो और पृच्छक दक्षिण भाग में खड़ा होकर प्रश्न पूछे, तो कष्ट से कार्यसिद्धि होती है। जिस तरफ का स्वर नहीं चलता हो, उस ओर खड़ा होकर प्रश्न पूछे तो कार्य हानि होती है। यदि सूर्य (दक्षिण) नाड़ी में विषमाक्षर और चन्द्र (वाम) नाड़ी में पृच्छक समाक्षरों का उच्चारण करे, तो अवश्य कार्यसिद्धि होती है। किसी-किसी के मत में दक्षिण स्वर चलने पर प्रश्नकर्ता के सम प्रश्नाक्षर हों तो धनहानि, रोगवृद्धि, कौटुम्बिक कष्ट एवं अपमान आदि सहन करने पड़ते हैं और यदि दक्षिण स्वर चलने पर विषम प्रश्नाक्षर हों तो सन्तानप्राप्ति, धन-लाभ, मित्रसमागम, कौटुम्बिक सुख एवं स्त्रीलाभ होता है। जिस समय श्वास भीतर जा रहा हो, उस समय पृच्छक प्रश्न करे तो जय और बाहर आ रहा हो, उस समय प्रश्न करे तो हानि होती है। जिस ओर का स्वर चल रहा हो, उसी ओर आकर पृच्छक प्रश्न करे तो मनोरथसिद्धि और विपरीत ओर पृच्छक खड़ा हो तो कार्य हानि होती है। स्वर का विचार सूक्ष्म रीति से १. “वामे वा दक्षिणे वापि धाराष्टाङ्गलदीर्घिका। षोडशाङ्गुलमापः स्युस्तेजश्च चतुरङ्गलम्॥ द्वादशांगुलदीर्घः स्याद्वायुयॊमाङ्गलेन हि।"-स. सा., पृ. ७३। तत्त्वानां विवेचनं शिवस्वरोदये, पृ. ४२-६० तथा समरसारे, पृ. ७०-६० इत्यादिषु द्रष्टव्यम्। २. शि. स्व., ४४-४५। ३. स.सा., पृ. ७६। ४. शि. स्व., पृ. १५-१६ । ५. स. सा., पृ. ८३। ६८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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