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________________ क + य् + अ ये तीन अक्षर प्रथम वर्ग के हैं तथा आ और र द्वितीय वर्ग के हैं । यहाँ प्रथम वर्ग के तीन वर्ण और द्वितीय वर्ग के दो वर्ण हैं, अतः प्रथम द्वितीय वर्ग का संयोग होने से यह प्रश्न संयुक्त नहीं कहलाएगा । प्रश्न पूछने के लिए जब कोई आए तो उसके मुख से जो पहला वाक्य निकले, उसी को प्रश्नवाक्य मानकर अथवा उससे किसी पुष्प, फल, देवता, नदी और पहाड़ का नाम पूछकर अर्थात् प्रातः काल में आने पर पुष्प का नाम, मध्याह्नकाल में फल का नाम, अपराह्न में देवता का नाम और सायंकाल में नदी या पहाड़ का नाम पूछकर प्रश्नवाक्य ग्रहण करना चाहिए। पृच्छक के प्रश्न वाक्य का स्वर, व्यंजनों के अनुसार विश्लेषण कर संयुक्त, असंयुक्त, अभिहत, अनभिहत, अभिघातित, आलिंगित, अभिधूमित और दग्ध इन आठ भेदों के द्वारा फल का निर्णय करना चाहिए । यदि प्रश्नवाक्य में संयुक्त वर्णों की अधिकता हो - प्रथम और तृतीय वर्ग के वर्ण अधिक हों अथवा प्रश्नवाक्य का प्रारम्भ कि, चि, टि, ति, पि, यि, शि, को, चो, टो, तो, पो, यो, शो, ग, ज, ड, द, ब, ल, स, गे, जे, दे, वे, ले, से अथवा, क् + ग्, क् + ज्, क् + डू, क् + द्, क् + ब्, क् + ल्, क् + स्, च् + ज्, च् + ड, च् + द् च् + बू, च् + ल्, च् + स्, टू + ग्, ट् + ज़्, ट् + ड्, ट् + द्, ट् + ब्, ट् + ल्, ट् + स्, त् + ग्, त् + ज्, त् + ङ्, त् + द्, त् + ब, त् + ल, त् + स्, प् + ग्, प् + ज्, फ् + ड्, प् + द्, प्+ ब्, प् + ल्, प् + स्, य् + ग्, य+ज्, य् + ड्, य् +द्, य् + ब्, य् + ल्, य् + स्, श् + ग्, श् + ज्, श् + ड्, श् + द्, श् + ब्, श् + ल्, श् + स्, ग् + क्, ग् + च्, ग् + टू, ग् + त्, ग् + प्, ग् +य्, ग्+श्, ज् + क्, ज् + च्, ज् + टू, ज् + प्, ज् + यू, ज् + शू, ड् + क्, ड् + चू, ड् + टू, ड् + तू, ड् + प्, ड् + यू, ड् + श्, द् + क्, द् + चू, द् + टू, द् + त्, द् + पू, द् +य्, द् + श्, ब् + क्, ब् + च्, ब् + टू, ब् + त्, ब् + प्, ब् +य्, ब् + श्, ल् + क्, ल् + च्, ल् + टू, ल् + त्, ल् + यू, ल् + श्, स् + क्, स् + च्, स् + ट्, स् + त्, स् + प्, स् +य्, स् + श् से होता हो तो संयुक्त प्रश्न होता है, संयुक्त प्रश्न का फल शुभकारक बताया है 1 प्रथम और द्वितीय वर्ग, द्वितीय और चतुर्थ वर्ग, तृतीय और चतुर्थ वर्ग एवं चतुर्थ और पंचम वर्ग के वर्णों के मिलने पर असंयुक्त प्रश्न कहलाता है। प्रथम और द्वितीय वर्गाक्षरों के संयोग से - क ख च छ, ट ठ त थ, प फ य र इत्यादि; द्वितीय और चतुर्थ वर्गाक्षरों से संयोग से - खघ, छ झ, ठ ढ, थ ध, फ भ, र व, इत्यादि; तृतीय और चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से - गघ, जझ, ड ढ, द ध, ब भ, व ल इत्यादि एवं चतुर्थ और पंचम वर्गाक्षरों के संयोग से - घ ङ झ ञ, ढ ण, धन, भ म इत्यादि विकल्प बनते हैं । असंयुक्त प्रश्न होने से फल की प्राप्ति बहुत दिनों के बाद होती है। यदि प्रथम द्वितीय वर्गों के अक्षर मिलने से असंयुक्त प्रश्न हो, तो धनलाभ, कार्य सफलता और राजसम्मान अथवा जिस सम्बन्ध में प्रश्न पूछा गया हो, उस फल की प्राप्ति तीन महीने के उपरान्त होती है । द्वितीयचतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से असंयुक्त प्रश्न हो, तो मित्र - प्राप्ति, उत्सववृद्धि, कार्यसाफल्य की प्राप्ति छह महीने में होती है। तृतीय- चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से असंयुक्त प्रश्न हो, तो अल्पलाभ, पुत्र प्राप्ति, मांगल्यवृद्धि और प्रियजनों से झगड़ा एक महीने के अन्दर होता है । चतुर्थ और प्रस्तावना: ४१
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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