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________________ गद्य अंश में कह दिया है । रचयिता की अभिव्यंजना शक्ति बहुत बढ़ी चढ़ी है। इसमें एक भी शब्द व्यर्थ नहीं आया है। भाषा का कम प्रयोग करने पर भी ग्रन्थकार को जिस बात का निरूपण करना चाहिए, सरलता से कर दिया है। फलित ज्योतिष के प्रश्न ग्रन्थों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । यद्यपि इसका कलेवर 'आयज्ञानतिलक' या 'आयसद्भाव' की तुलना में बहुत कम है, फिर भी विषय प्रतिपादन की दृष्टि से इसका स्थान उपलब्ध जैन प्रश्नसाहित्य महत्त्वपूर्ण है। इस एक ग्रन्थ के सांगोपांग अध्ययन से कोई भी व्यक्ति प्रश्नशास्त्र का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। 'प्रश्नचूडामणि' नाम का एक ग्रन्थ चन्द्रोन्मीलन प्रश्नप्रणाली की संशोधित केरल प्रश्नप्रणाली में भी है; पर इस ग्रन्थ में वह खूबी नहीं जो इसमें है । प्रश्नचूडामणि या दिव्यचूड़ामणि में पद्यों में वर्णों के अष्टवर्गों का निरूपण किया है तथा फलकथन में कई स्थानों में त्रुटियाँ हैं । 'प्रश्नचूडामणि' ग्रन्थ भी जैनाचार्य द्वारा निर्मित प्रतीत होता है। इसमें मंगलाचरण नहीं है । ग्रन्थ के अन्त में 'ॐ शान्ति श्रीजिनाय नमः' आया है । यह पाठ मूल ग्रन्थकार का प्रतीत होता है । जैन प्रश्नशास्त्र में 'केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि' स्थान विषयनिरूपण शैली की अपेक्षा से यदि सर्वोपरि माना जाए, तो भी अत्युक्ति न होगी । इस एक ग्रन्थ में 'आयप्रश्नप्रणाली' 'चन्द्रोन्मीलन प्रश्नप्रणाली' तथा 'कल्पितसंज्ञालग्नप्रणाली' इन तीनों का सामान्य आभास मिल जाता है । यों तो इसमें 'चन्द्रोन्मीलनप्रश्नप्रणाली' का ही अनुकरण किया गया है। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि का विषय-परिचय इस ग्रन्थ में अ क च ट त प य श अथवा अ ए क च ट त प य श इन अक्षरों का प्रथम वर्ग; आ ऐ ख छ ठ थ फ र ष इन अक्षरों का द्वितीय वर्ग; इ ओ गं ज ड द ब ल स इन अक्षरों का तृतीय वर्ग; ई औ घ झ ढ ध भ व ह इन अक्षरों का चतुर्थ वर्ग और उ ऊ ङ ण न म अं अः इन अक्षरों का पंचम वर्ग बताया गया है। इन अक्षरों को प्रश्नकर्ता के वाक्य या प्रश्नाक्षरों से ग्रहण कर अथवा उपर्युक्त पाँचों वर्गों को स्थापित कर प्रश्नकर्ता से स्पर्श कराके अच्छी तरह फलाफल का विचार करना चाहिए। संयुक्त, असंयुक्त, अभिहत, अनभिहत और अभिघातित इन पाँचों द्वारा तथा आलिंगित, अभिधूमित और दग्ध इन तीन क्रियाविशेषणों द्वारा प्रश्नों के फलाफल का विचार करना चाहिए। प्रथम वर्ग और तृतीय वर्ग के संयुक्त अक्षर प्रश्नवाक्य में हों तो वह प्रश्नवाक्य संयुक्त कहलाता है । प्रश्नवर्णों में अ इ ए ओ ये स्वर हों तथा क च ट त प श ग ज ड द ब स व्यंजन हों, तो संयुक्त संज्ञक होता है। संयुक्त प्रश्न होने पर पृच्छक का कार्य सिद्ध होता है। यदि पृच्छक लाभ, जय, स्वास्थ्य, सुख और शान्ति के सम्बन्ध में प्रश्न पूछने आया है, तो संयुक्त प्रश्न होने पर उसके वे सभी कार्य सिद्ध होते हैं । यदि प्रश्नवर्णों में कई वर्गों के अक्षर हैं अथवा प्रथम, तृतीय वर्ग के अक्षरों की बहुलता होने पर भी संयुक्त प्रश्न ही माना जाता है। जैसे पृच्छक के मुख से प्रथम वाक्य 'कार्य' निकला, इस प्रश्नवाक्य का विश्लेषण किया । इसका क् + आ + र् + य् + अ यह स्वरूप हुआ । इस विश्लेषण में ४० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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