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तो सौ दोषों को दूर करता है। यदि शुक्र इन्हीं स्थानों में हो तो दो सौ दोषों को दूर करता है। यदि इन्हें स्थानों में बृहस्पति स्थित हो तो एक लाख दोषों को नाश करता है। लग्न का स्वामी अथवा नवांश का स्वामी आदि लग्न, चौथे, दसवें, ग्यारहवें, स्थान में स्थित हो तो अनेक दोषों को शीघ्र ही भस्म कर देता है।
वधूप्रवेशमुहूर्त व चक्र विवाह के दिन से १६ दिन के भीतर नव, सात, पांच दिन में वधूप्रवेश शुभ है। यदि किसी कारण से १६ दिन के भीतर वधूप्रवेश न हो तो विषम मास, विषम दिन और विषम वर्ष में वधूप्रवेश करना चाहिए।
___ तीनों उत्तरा (उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा) रोहिणी, अश्विनी, पुष्य, हस्त, चित्रा, अनुराधा, रेवती, मृगशिर, श्रवण, धनिष्ठा, मूल, मघा और स्वाति नक्षत्र में रिक्ता (४।६।१४) छोड़ शुभ तिथियों में और रवि, मंगल, बुध छोड़ शेष वारों में वधूप्रवेश करना शुभ है।
उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, अश्विनी, हस्त, पुष्य, नक्षत्र
मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, मूल, मघा, स्वाति वार सोम, गुरु, शुक्र, शनि तिथि १।२।३।५।७।८।१०।११।१२।१३।१५ लग्न २३।५।६।८।६।११।१२
द्विरागमनमुहूर्त व चक्र विषम (१।३।५।७) वर्षों में; कुम्भ, वृश्चिक, मेष राशियों के सूर्य में, गुरु, शुक्र, चन्द्र, इन वारों में मिथुन, मीन, कन्या, तुला, वृष, इन लग्नों में और अश्विनी, पुष्य, हस्त, उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, स्वाति, मूल, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, इन नक्षत्रों में द्विरागमन शुभ है। समय १।३।५।७।६ विवाह के बाद इन वर्षों में, कुम्भ, वृश्चिक, मेष के सूर्य में
अश्विनी, पुष्य, हस्त, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, नक्षत्र रोहिणी, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, स्वाति, मूल, मृगशिरा,
__ रेवती, चित्रा, अनुराधा । वार और
बुध, बृहस्पति, शुक्र, सोम, १।२।३।५।७।१०।११।१२।१३।१५ तिथियों में लग्न और २।३।६।७।१२ लग्नों में; लग्न से १।२।३।५।७।१०।११ स्थानों में उनकी शुद्धि शुभग्रह और ३६।११ में पापग्रह शुभ होते हैं।
१७४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि