________________
वाग्दान मुहूर्त उत्तराषाढ़ा, स्वाति, श्रवण, तीनों पूर्वा, अनुराधा, धनिष्ठा, कृत्तिका, रोहिणी, रेवती, मूल, मृगशिर, मघा, हस्त, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में वाग्दान-सगाई करना शुभ है।
विवाहमुहूर्त मूल, अनुराधा, मृगशिर, रेवती, हस्त, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, स्वाति, मघा, रोहिणी, इन नक्षत्रों में और ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, आषाढ़ इन महीनों में विवाह करना शुभ है। विवाह का सामान्य दिन पंचांग में लिखा रहता है। अतः पंचांग के दिन को लेकर उस दिन वर-कन्या के लिए यह विचार करना-कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल, दोनों के लिए चन्द्रबल देख लेना चाहिए।
गुरुवल विचार-बृहस्पति कन्या की राशि से नवम, एकादश, द्वितीय और सप्तम राशि में शुभ; दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है। . सूर्यबल विचार-सूर्य वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश, द्वितीय और सप्तम राशि में शुभ, प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है। . चन्द्रबल विचार-चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से तीसरा, छठा, सातवाँ, दशवाँ, ग्यारहवाँ शुभ, पहिला, दूसरा, पाँचवाँ, नौवाँ, दान देने से शुभ और चौथा, आठवाँ, बारहवाँ अशुभ होते हैं।
विवाह में त्याज्य अन्धादि लग्न-दिन में तुला और वृश्चिक राशि में तुला और मकर वधिर हैं तथा दिन में सिंह, मेष, वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन, कर्क अन्धसंज्ञक हैं। दिन में कुम्भ और रात्रि में मीन ये दो लग्न पंगु होते हैं। किसी-किसी आचार्य के मत से धन, तुला, वृश्चिक ये अपराह्न में वधिर हैं, मिथुन, कर्क, कन्या ये लग्न रात्रि में अन्धे हैं। सिंह, मेष, वृष लग्न दिन में अन्धे हैं और मकर, कुम्भ, मीन ये लग्न प्रातःकाल तथा सायंकाल में कुबड़े होते हैं।
अन्धादि लग्नों का फल-यदि विवाह वधिर लग्न में हो तो वर कन्या दरिद्र, दिवान्ध लग्न में हो तो कन्या विधवा, रात्र्यन्ध लग्न में हो तो सन्ततिमरण और पंगु हो तो धननाश होता है।
लग्नशुद्धि-लग्न से बारहवें शनि, दसवें मंगल, तीसरे शुक्र, लग्न में चन्द्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते। लग्नेश और सौम्य ग्रह आठवें में अच्छे नहीं होते हैं और सातवें में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।
ग्रहों का बल-प्रथम, चौथे, पाँचवें, नौवें और दसवें स्थान में स्थित बृहस्पति सब दोषों को नष्ट करता है। सूर्य ग्यारहवें स्थान में स्थित तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लग्न में स्थित नवांश दोष को नष्ट करता है। बुध लग्न से चौथे, पाँचवें, नौवें और दशवें स्थान में हो
परिशिष्ट-१ : १७३