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________________ को प्राप्त होता है। अभिघातित तवर्ग के प्रश्नाक्षर होने पर मण्डूकप्लवन गति से तवर्ग टवर्ग को प्राप्त होता है। : विवेचन-आचार्य ने उपर्युक्त प्रकरण में तवर्ग के परिवर्तन का विचार किया है। चोरी गयी वस्तु, मुट्ठी में रखी गयी वस्तु एवं मन में चिन्तित वस्तु के नाम को ज्ञात करने के लिए तवर्ग के चक्र का विचार किया है। क्योंकि प्रश्नवाक्यों की किस प्रकार की स्थिति में तवर्ग परिवर्तित होकर किस अवस्था को प्राप्त होता है तथा उस अवस्था के अनुसार तवर्ग का कौन-सा वर्ग मानना पड़ेगा-आदि विचार उपर्युक्त प्रकरण में विद्यमान है। इसका विशेष विवेचन पहले किया जा चुका है। गर्गाचार्य ने नद्यावर्त, सिंहावलोकन, गजावलोकन, अश्वमोहित और मण्डूकप्लवन आदि चक्रों के गणित को न लिखकर केवल प्रश्नाक्षरों पर-से ही किस प्रकार के प्रश्न में किस दृष्टि से कौन-सा वर्ग आता है, इसका कथन किया है। पहले जो नद्यावर्त आदि का गणित दिया गया है, उससे भी प्रामाणिक ढंग से वर्ग का नाम निकाला जा सकता है। यवर्ग' चक्र विचार यवर्गे आलिङ्गितेऽवर्ग नद्यावर्तक्रमेण प्राप्नोति। यवर्गेऽभिधूमिते कवर्गमरवमीहितक्रमेण प्राप्नोति। यवर्गेऽभिघातिते शवगं भेकप्लुत्या प्राप्नोति। "इति यवर्गचक्रम्। अर्थ-आलिंगित प्रश्नाक्षरों के होने पर प्रश्न का यवर्ग नद्यावर्तक्रम से अवर्ग को प्राप्त होता है। अभिधूमित प्रश्नाक्षरों के होने पर प्रश्न का यवर्ग अश्वमोहित क्रम से कवर्ग को प्राप्त होता है। अभिघातित प्रश्नाक्षरों के होने पर प्रश्न का यवर्ग मण्डूकप्लवन गति से शवर्ग को प्राप्त होता है। इस प्रकार यवर्ग चक्र का वर्णन समझना चाहिए। कवर्ग चक्र विचार कवर्गे आलिंङ्गिते टवर्गमश्चप्लुत्याऽभिधूमिते दग्धेऽभिघातिते च चीनप्लुतिं (चीनगत्या तवर्ग) प्राप्नोति । इति कवर्गचक्र म्। अर्थ-आलिंगित प्रश्नाक्षरों के होने पर प्रश्न का कवर्ग अश्वगति-अश्वमोहित क्रम से टवर्ग को प्राप्त होता है। अभिधूमित, दग्ध और अभिघातित प्रश्नाक्षरों के होने पर प्रश्न १. यवर्ग चक्र-ता. मू.। २. अश्वमोहितक्रमः-क. मू.। ३. प्राप्नोतीति पाठो नास्ति-क. मू.। ४. मण्डूकप्लवनगत्या-ता. मू.। ५. इति यवर्गचक्रम्-ता. मू.। ६. कवर्गे आलिङ्गिते, उन्नद्धनकेऽभिधूमितेवं, अश्वगत्याके दग्धे अभिघातितं चीनगति-इति कवर्गचक्रम्-क. मू.। ७. प्राप्नोतीति पाठो नास्ति-ता. मू.। ८. कवर्णचक्रम्-ता. मू.। १५६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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