________________
७१४ + ८६ = ८०३ : ५ = आया ।
५- अश्वमोहितचक्र' - अकारादि, स्वरों के द्विगुणित अंक और ककारादि व्यंजनों के अंक पूर्ववत् स्थापित कर चक्र बना लेना चाहिए। यदि प्रश्नवाक्य का आद्य वर्ग अधर - ख घछ झ ठ ढ थ ध फ भर व ष ह में से कोई अक्षर हो तो प्रश्नाक्षरों की स्वर व्यंजन संख्या को एकत्रित कर आठ का भाग देने पर एकादि शेष में अवर्गादि समझने चाहिए । यदि उत्तराक्षरों- क ग ङ च ज अ ट ड ण त द न प ब म य ल श स में से कोई भी वर्ण प्रश्नाक्षरों का आद्य वर्ण हो तो प्रश्नाक्षरों के स्वर व्यंजन की अंक संख्या को पन्द्रह से 'गुणा कर चौदह जोड़कर आठ का भाग देने पर एकादि शेष में अवर्गादि होते हैं । पश्चात् लब्ध को पिण्ड में जोड़कर पुनः पाँच का भाग देने पर एकादि शेष में वर्ण के प्रथमादिवर्ग होते हैं।
अश्वमोहित का दिक्चक्र
ईश
३२००
उ.य.
१६००
वाय.प.
του
पू. अ. आग्ने.
२५
क. ५०
श्री
प. त.
४००
द. च.
१००
नै. ट.
२००
१६० लब्ध, ३ शेष । विलोमक्रम से गणना की तो प वर्ग
१. बृ. ज्यो. अ. ४। २६०-६१ ।
२. न. ज. पृ. २०२
१५४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
अश्वमोहित का स्वर-व्यंजना चक्र
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः
२ ४ ६ ८१०१२ १४ १६ १८
क ख
घ ङ च छ ज झ
१
२
७
ड ढ
ध न
१३ १४
म
ग
३ ४ ५ ६
ण त थ द
て ९
Ν
प
१५ १६ १७ १८
१९ २०
२१
य र ल व श ष स
ह
२५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३
२० २२ २४
ञ
१०
फ
२२
०
2
ल 2210
०
ट
2
2 2 0 0
११ १२
ब
भ
२३ २४
उदाहरण - मोहन का प्रश्न वाक्य 'कैलास पर्वत' है । यहाँ प्रश्न वाक्य का आद्य वर्ण उत्तर संज्ञक वर्ग है। अतः निम्न क्रिया करनी होगी - १ + २८ + ३२+२१+२७+२६ + १६ = १५४ व्यंजनांक संख्या, १६+४+२+२+२+२= २८ स्वरांक संख्या, १५४ + २८ = १८२ स्वर व्यंजनांक संख्या का योग, १८२ १५ = २७३० + १४ = २७४४ ÷ ८ = ३४३ लब्ध, ० शेष यहाँ श वर्ग का प्रश्न माना जाएगा। पश्चात् २७४४ + ३४३ = ३०८७ : ५ = ६१७ लब्ध, २ शेष, यहाँ पर वर्ग का द्वितीय अक्षर प्रश्न का होगा । 'नरपतिजयचर्या' में अश्वचक्र' का निरूपण करते हुए बताया है कि एक घोड़े की मूर्ति बनाकर, उसके मुख आदि विभिन्न अंगों पर पृच्छक के प्रश्नाक्षरानुसार और अट्ठाईस नक्षत्रों को क्रम से स्थापित कर देना चाहिए। प्रश्नाक्षरगत नक्षत्र को आदि के दो नक्षत्र मुख में रखकर पश्चात् चक्षुद्वय, कर्णद्वय, मस्तक, पूँछ और दोनों पैर इन आठ अंगों में आगे सोलह नक्षत्र क्रमशः स्थापना करें । पश्चात् पेट में पाँच और पीठ में भी पाँच नक्षत्रों का स्थापन
●