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________________ पद्यार्थ में वर्तमान लग्न नक्षत्रों का निरूपण किया गया है। प्राचीन भारत में विशिष्ट अवस्था की राशि के समान विशिष्ट अवस्था के नक्षत्रों को भी लग्न कहा जाता था। - जैन ज्योतिष की प्राचीनता का एक प्रमाण पंचवर्षात्मक युग में व्यतीपात आनयन की प्रक्रिया है। 'वेदांगज्योतिष' से भी पहले इस प्रक्रिया का प्रचार भारतवर्ष में था। प्रक्रिया निम्न प्रकार है अयणाणं संबंधे रविसोमाणं तु वे हि व जुगम्मि। जं हवइ भागलद्धं वइहया तत्तिया होंति॥ वावत्तपरीयमाणे फलरासी इच्छिते उजुगमे ए। इच्छियवइवायंपि य इच्छं काऊण आणे हि॥' इन गाथाओं की व्याख्या करते हुए टीकाकार मलयगिरि ने “इह सूर्यचन्द्रमसौ स्वकीयेऽयने वर्तमानौ यत्र परस्परं व्यतिपततः स कालो व्यतिपातः, तत्र रविसोमयोः युगे युगमध्ये यानि अयनानि तेषां परस्परं सम्बन्धे एकत्र मेलने कृते द्वाभ्यां भागो ह्रियते। हृते च भागे यद्भवति भागलब्धं तावन्तः तावत्प्रमाणा युगे व्यतिपाता भवन्ति।" गणितक्रिया-७२ व्यतिपात में १२४ पर्व होते हैं, तो एक व्यतिपात में कितने ? अनुपात करने पर-१२०४ १=१३२ पर्व, २४ १५ = १०.६० तिथि, ६० x ३० = २५ मुहूर्त व्यतिपात ध्रुवराशि की पट्टिका एक युग मैं निम्न प्रकार आयेगी पर्व तिथि मुहूर्त १ १० २५ ६ २० | x१= ७२ -४२%3 8 | 19. १२४ | -x३= ७२ १२४ -x४% ७२. १२४ -x५ ७२ -x६= ७२ |3|8|2| x७-3 -- X tự ७२ ७२ 8|5| x १०= १. ज्योतिष्करण्डक, पृ. २००-२०५ प्रस्तावना: १३
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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