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गयी वस्तु एक महीने के भीतर प्रयत्न करने से मिल जाती है। तथा चोरी गयी वस्तु की स्थिति बक्स या तिजोरी में बतलाना चाहिए। यदि पशुचोरी का प्रश्न हो तो जंगल में उस पशु का निवास कहना चाहिए। यहाँ इतना और स्मरण रखना होगा कि चोरी गया हुआ पशु थोड़े दिनों के बाद अपने-आप ही आ जाएगा। ऐसा फल कहना चाहिए। इसका कारण यह है कि तृतीय वर्ग के वर्ण नागोरग जाति के हैं, अतः उनका फल चौपायों की चोरी का अभाव है। सन्तान प्रश्न में जब आद्य प्रश्नाक्षर चतुर्थ वर्ग के हों तो सन्तान प्राप्ति का अभाव कहना चाहिए। यदि आद्य प्रश्नाक्षर झ ढ हों तो गर्भ का विनाश; भ व ई हों तो कन्या प्राप्ति और ह व प्रश्नाक्षरों के होने पर पुत्र-लाभ, किन्तु उसका तत्काल मरण फल कहना चाहिए। धनलाभ के प्रश्न में आद्य प्रश्नाक्षर चतुर्थ वर्ग के अक्षर हों या समस्त प्रश्नाक्षरों में चतुर्थ वर्ग के अक्षरों की अधिकता हो तो साधारण लाभ; घ भ व आद्य प्रश्नाक्षर हो तों अल्पलाभ, सम्मान प्राप्ति एवं यशोलाभ; झ औ ह आद्य प्रश्नाक्षर हों या प्रश्नाक्षरों में इन वर्गों की अधिकता हो तो धनहानि, अपमान और पदच्युति आदि. अनिष्टकारी फल कहना चाहिए। जय-विजय के प्रश्न में चतुर्थ वर्ग के आद्य प्रश्नाक्षरों के होने पर विजय लाभ; समस्त प्रश्नाक्षरों में चतुर्थ वर्ग के पाँच अक्षरों के होने पर ससम्मान विजयलाभ; तीन या सात अक्षरों के होने पर विजय और छह, आठ और दस अक्षरों के होने पर पराजय कहनी चाहिए। यदि आद्य प्रश्नाक्षर झ ढ औ ह हों तो निश्चय पराजय; भ व ई हों तो जय और घ ओद्य प्रश्नाक्षर हो तो सन्धि फल कहना चाहिए।
यदि पृच्छक के प्रश्नाक्षरों में आद्य वर्ण पंचम वर्ग का अक्षर हो तथा समस्त प्रश्नाक्षरों में पंचम वर्ग के अक्षरों की अधिकता हो तो चोरी के प्रश्नों में चोरी गया द्रव्य एक वर्ष के भीतर अवश्य मिल जाता है तथा चोर का सम्यक् पता भी लग जाता है। जब ङ ञ न आद्य प्रश्नाक्षर होते हैं, उस समय चोरी की वस्तु का पता एक माह में लग जाता है, लेकिन जब ण ञ ऊ प्रश्नाक्षर होते हैं, उस समय चोरी गयी वस्तु का पता नहीं लगता है। हाँ, कुछ वर्षों के पश्चात् उस वस्तु के सम्बन्ध में समाचार अवश्य मिल जाता है। आलिंगितकाल में जब प्रश्नाक्षरों में पंचम वर्ग के वर्णों की अधिकता आए, तो चोरी के प्रश्न में पृच्छक के घर में ही चोरी की चीज को समझना चाहिए। अभिधूमित काल के प्रश्न में आद्यक्षर म न के होने पर चोरी की वसतु का पता शीघ्र लग जाने का फल बताना चाहिए। यहाँ इतना और स्मरण रखना होगा कि दग्ध काल में किया गया प्रश्न सदा निरर्थक या विपरीत फल देनेवाला होता है। अतः दग्ध काल में पंचम वर्ग के वर्गों के अधिक होने पर भी चोरी की गयी वस्तु का अभाव-अप्राप्ति फल ज्ञात करना चाहिए। सन्तान प्राप्ति के प्रश्न में जब आद्य वर्ण पंचम वर्ग के-उ ऊ ङ ञ ण न म अं अः हों तो विलम्ब से सन्तान लाभ समझना चाहिए। यदि आलिंगित काल में सन्तान प्राप्ति का प्रश्न किया हो और आद्य प्रश्नाक्षर अ न म हों तो निश्चित रूप से पुत्र प्राप्ति; तथा आद्यक्षर उ ऊ हों तो कन्या-प्राप्ति का फल बताना चाहिए। अभिधूमित काल में यदि यही सन्तान प्राप्ति का प्रश्न किया गया हो तो जप-तप आदि शुभ कार्यों के करने पर सन्तान प्राप्ति एवं दग्ध काल में यदि प्रश्न किया हो तो सन्तान के अभाव का फल बतलाना चाहिए। लाभालाभ के प्रश्न में आद्य प्रश्नाक्षर पंचम वर्ग के वर्ण हों या
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १२५