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पूर्ण बली होकर लग्न को देखता हो तो लाल वर्ण (रंग), बृहस्पति की उक्त स्थिति होने पर कांचन वर्ण, बुध की उक्त स्थिति होने पर हरा वर्ण, सूर्य की उक्त स्थिति होने पर गौर वर्ण, चन्द्रमा की उक्त स्थिति होने पर आक के पुष्प के समान श्वेतरक्त वर्ण; शुक्र की उक्त स्थिति होने पर परम शुक्लवर्ण और शनि, राहु एवं केतु की उक्त स्थिति पर कृष्ण वर्ण के व्यक्ति की चिन्ता कहनी चाहिए।
बाल-वृद्धादि एवं आकृति मूलक समादि अवस्थाएँ आलिङ्गितेषु बालः। अभिधूमितेषु मध्यमः। दग्धेषु वृद्धः। आलिङ्गितेषु समः। अभिधूमितेषु दीर्घः । दग्धेषु कुब्जः। अनामविशेषाः ज्ञातव्या इति मनुष्ययोनिः।
अर्थ-आलिंगित प्रश्नाक्षर होने पर बाल्यावस्था, अभिधूमित प्रश्नाक्षर होने पर मध्यमावस्था-युवावस्था और दग्ध प्रश्नाक्षर होने पर वृद्धावस्था होती है। आलिंगित प्रश्नाक्षर होने पर सम-न अधिक कद में बड़ा न अधिक छोटा, अभिधूमित प्रश्नाक्षर होने पर दीर्घ. लम्बा और दग्ध प्रश्नाक्षर होने पर कुब्ज मनुष्य की चिन्ता होती है। नाम को छोड़कर अन्य सब विशेषताएँ प्रश्नाक्षरों पर से ही जाननी चाहिए। इस प्रकार मनुष्य योनि का प्रकरण पूर्ण
हुआ।
विवेचन-यदि मंगल चतुर्थ भाव का स्वामी हो, चतुर्थ भाव स्थित हो या चतुर्थ भाव को देखता हो तो युवा; बुध चतुर्थ भाव का स्वामी हो, चतुर्थ भाव में स्थित हो या चतुर्थ भाव को देखता हो तो बालक; चन्द्रमा और शुक्र चतुर्थ भाव में स्थित हों, चतुर्थ भाव के स्वामी हों या चतुर्थभाव को देखते हों तो अर्द्धवयस्क; शनि, रवि, बृहस्पति और राहु ये ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित हों, चतुर्थ भाव के स्वामी हों या चतुर्थ भाव को देखते हों तो वृद्ध पुरुष की चिन्ता कहनी चाहिए। आकार बली लग्नाधीश के समान जानना चाहिए अर्थात् बली सूर्य लग्नाधीश हो तो शहद के समान पीले नेत्र लम्बी-चौड़ी बराबर देह, पित्त प्रकृति और थोड़े बालोंवाला; बली चन्द्रमा लग्नाधीश हो तो पतली गोल देह, वात-कफ प्रकृति, सुन्दर आँख, कोमल वचन और बुद्धिमान; मङ्गल लग्नाधीश हो तो क्रूर दृष्टि, युवक, उदारचित्त, पित्त प्रकृति, चंचल स्वभाव और पतली कमर वाला; बुध लग्नशील हो तो वाक्पटु, हँसमुख, वात-पित्त-कफ प्रकृति वाला और स्थूल काय; बृहस्पति लग्नाधीश हो तो सुन्दर शरीर, स्वस्थ, कफ-वात प्रकृति और कुटिल केशवाला एवं शनैशर लग्नाधीश हो तो आलसी, पीले नेत्र, कृश शरीर, मोटे दाँत, रूखे बाल, लम्बी देह और अधिक वात वाला होता है। इस प्रकार लग्नानुसार जीवयोनि का निरूपण करना चाहिए।
प्रस्तुत ग्रन्थानुसार प्रश्नकर्ता के मन में क्या है, वह क्या पूछना चाहता है, इत्यादि बातों का परिज्ञान आचार्य ने जीव, मूल और धातु इन तीन प्रकार की योनियों द्वारा किया
१. तुलना-के. प्र. पृ. ६०-६१। चं. प्र. श्लो. २६६ । ता. नी. पृ. ३२४ । भु. दी. पृ. ३०-४५ । २. के. प्र., र. पृ. ६१। चं. प्र. श्लो. २८५-२७७, २५५ । भुव, दी. पृ. २४ । ३. अग्रे नाम्ना विशेष इति मनुष्याः-क. मू.।
१०० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि