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________________ सम्यक् दर्शन जैसे 'अहिंसा परमोधर्म' जैन दर्शन का महाघोष है ,उसी तरह “सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि, मोक्ष मार्गः" जैन दर्शन का सार है। (तत्वार्थ सूत्र, उमास्वामिः, प्रथम पद-प्रथम अध्याय) । संक्षेप में ये तीनों रत्न सम्मिलित रूप से मोक्ष के साधन हैं। अब प्रत्येक का अर्थ सारांश में समझते हैं। सम्यग् दर्शन का अर्थ हैसच्ची श्रद्धा, सत्य तत्वों में गहरी आस्था, सही मार्ग या दिशाबोध, सही दृष्टि, अनेकांत दर्शन एवं जीवन शैली में स्याद्वाद इत्यादि। सम्यग्ज्ञान का अर्थ है- सत्य तत्व जैसे जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, बंधन, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष इनका व्यापक विशद् ज्ञान । सम्यग् चारित्र का अर्थ है- सम्यग्दर्शन एवं ज्ञान अनुसार आचरण करना। फिर भी इन तीनों में मूलाधार सम्यग्-दर्शन यानी सत्य में श्रद्धा है। इसीलिये उत्तराध्ययन गाथा 28/30 में कहा है। - नांदसणिस्सनाणं नाणेण विना नहुँति चरण गुणा। अर्थात् सम्यग्दर्शन बिना, सम्यग्ज्ञान नहीं और उसके बिना सम्यग् चारित्र नहीं। इस संदर्भ में शास्त्रों में यहाँ तक कहा गया है कि - .... "दंसणभट्ठा दंसणभट्ठास्स नत्थि निव्वाणं, सिझंति चरियभट्ठा, दंसणभट्ठाण सिझंति।" दर्शन से जो भ्रष्ट है, उसका निर्वाण असंभव है। चारित्र से भ्रष्ट है वह तो फिर सिद्धि पा सकता है लेकिन दर्शन से भ्रष्ट कभी सिद्धि नहीं पा सकता। सम्यग्दर्शन आत्मोन्नति की प्रथम सीढ़ी है। इसका कारण यह है कि सम्यग्दर्शन यानी चौथे
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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